- अनिल वर्मा
'' यादें नक्श हो जाये किसी पत्थर पर तो ,वे पत्थर दिल को पिघला सकती है।
यादें होती है , होते उनके पैर नहीं , पर पीढ़ियों तलक वे जा सकती है । ''
अमरशहीद चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत को अब ८४ वर्ष गुजर चुके है ,यह तो ज़माने का दस्तूर है कि वक्त और शासन की फ़िज़ा में बदलाव के साथ लोगो के आदर्श बदल जाते है, पर आज़ भी युवा पीढ़ी गर्व के साथ आज़ाद को अपना महानायक मानती है और वतन से मोहब्बत करने वाले हर हिंदुस्तानी के दिल में आज़ाद अब भी जीवित है. यूँ तो आज़ादी के मतवाले क्रांतिवीर चन्द्रशेखर आज़ाद की कर्मस्थली झाँसी थी , पर वह लम्बे अर्से तक अज्ञातवास के दौरान ओरछा और उसके समीपवर्ती स्थानो पर बेखौफ आज़ाद रहकर समूचे देश में क्रान्तिकारी आंदोलन का कुशल संचालन करते रहे . जब ब्रिटिश हूकूमत उन्हें शिकारी कुत्तो की तरह देश भर में हर तरफ तलाश कर रही थी , तब निर्भीक आज़ाद बुंदेलखण्ड की पावन धरा पर स्वाधीनता की अलख जगाते घूम रहे थे .
देश की इकलौती हीरा नगरी पन्ना के निकट स्थित पन्ना नेशनल पार्क बाघों के लिए प्रख्यात है , इसी पार्क में सुन्दर वन और जलप्रपात के प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित ' पांडव प्रपात ' नामक एक मनोरम और रमणीक पर्यटनस्थल है। इस गौरवशाली इतिहास से बहुत कम ही लोग अवगत है कि यह ऐतिहासिक स्थल अमरशहीद चंद्रशेखर आज़ाद की दुर्लभ स्मृतिया संजोये हुए है . ४ सितम्बर १९२९ को इसी स्थान पर आज़ाद ने स्थानीय क्रांतिकारियों के साथ एक बैठक की थी , जिसमे प. रामसहाय तिवारी ,नारायण दास खरे , प्रेम नारायण , बिहारीलाल , जयनारायण एवं झाँसी के अन्य क्रान्तिकारी उपस्थित थे। इस बैठक में ब्रिटिश हूकूमत के खिलाफ संघर्ष का आव्हान किया गया था और देश को आज़ाद कराने का संकल्प लिया गया था। यह संस्मरण सन १९७८ में लेखक श्री दशरथ एवं अन्य द्वारा प्रकाशित पुस्तक ''उत्कर्ष '' में छपा था , जो शब्दशः इस प्रकार था -
'' नौगाव स्थित एजेंसी की एक सी.आय. डी. रिपोर्ट के अनुसार ४ सितम्बर १९२९ को छतरपुर से पन्ना जाने वाले मार्ग पर केन नदी के उस पार पाण्डव प्रपात नामक वनाच्छादित स्थल पर श्री चंद्रशेखर आज़ाद की अध्यक्षता में क्रांतिकारियों की बैठक हुई थी , जिसका आयोजन पंडित रामसहाय तिवारी ने किया था और जिसमे टीकमगढ़ निवासी नारायण दास खरे व् प्रेम नारायण ,सरीला निवासी बिहारीलाल , महोबा निवासी जय नारायण ,आज़ाद तथा झाँसी के चार (एकत्र १३ ) लोगो ने भाग लिया था। इस सभा का उद्देश्य उक्त प्रतिवेदन अनुसार ' शासन को उखाड़ फेंकना तथा शासन के शीर्षस्थ अधिकारीयों की हत्या कर देना था। ' इस सभा की सूचना प्रभुदयाल नामक चरवाहे द्वारा दी गई थी। ''
इस घटनाचक्र का आंशिक उल्लेख लेखक श्री ए. यू. सिद्दीकी द्वारा अंग्रेजी में लिखित पुस्तक ''Indian Freedom Movement in Princely States of Vindhya Pradesh '' में भी किया गया है। परन्तु यह ऐतिहासिक तथ्य आज़ाद की शहादत के ८० वर्ष उपरांत भी शासन और आमजन की जानकारी में नहीं आया था , पहली बार इन पक्तियों के लेखक द्वारा यह तथ्य पन्ना टाईगर रिज़र्व के फील्ड डायरेक्टर श्री आर. श्रीनिवास मूर्ति को लिखित पत्र दिनांक १-१-२०१० अनुसार शासन के संज्ञान में लाया गया था , तब अपने कर्तव्य के प्रति सजग, ईमानदार और निष्ठावान I. F.S. अधिकारी श्री मूर्ति के सद्प्रयासों के परिणामस्वरूप २६जनवरी २०१० को पाण्डव प्रपात पर आयोजित एक गरिमामयी समारोह में कुछ फ्लैक्सो पर आज़ाद के दुर्लभ चित्रों की स्मारिका लगायी गयी थी , इसके उपरांत १५ अगस्त २०१० को उसी स्थान पर शासन द्वारा आज़ाद की एक भव्य प्रतिमा स्थापित करायी गयी और पाण्डव प्रपात से जुड़े उनके संस्मरण को भी शिलालेख पर अंकित किया गया था , इसका अनावरण मध्यप्रदेश शासन के तात्कालीन राज्य मंत्री श्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह द्वारा किया गया था। यह आशा है कि पांडव प्रपात पन्ना (म. प्र. ) में स्थित यह पाषाण प्रतिमा अमरशहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के महान त्याग और बलिदान की अनुपम गाथाओं से देशवासियों को युग युग तक प्रेरणा प्रदान करती रहेगी ।
- अनिल वर्मा
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