शहीद भगत सिंह के भाई क्रांतिवीर सरदार कुलबीर सिंह




शहीद भगत सिंह के भाई क्रांतिवीर सरदार कुलबीर सिंह  
                                                                               
                                                                                                                             - अनिल वर्मा

अभितेज सिंह
 

                                                                                                               





                  
                                    कुलवीर सिंह उस महान परिवार के रोशन  चिराग थे ,जहाँ  देशभक्ति और बलिदान की भावना रग रग में समायी हुई थी , अमर शहीद भगत सिंह के छोटे भाई कुलबीर सिंह का जन्म २६ फरवरी १९१५ को सरदार किशनसिंह और माता विद्यावती के घर लाहौर में हुआ था . उनकी प्राथमिक शिक्षा  दादा अर्जुन सिंह के संरक्षण  में ग्राम बंगा में हुई थी , फिर उन्होंने लाहौर के डी.ए.वी. मिडिल स्कूल से आगे की पढ़ाई की थी , पर १९२९ में उनकी पढ़ाई पर  पूर्ण विराम लग  गया और वह भी परिवार की गौरवशाली परम्परा को आगे बढाते हुए क्रांति के पथ पर चल पडे एवं क्रांतिकारियों के भूमिगत आंदोलन में छिपकर सहयोग देने लगे।

                              बड़े भाई भगत सिंह की  असेंबली बम केस में गिरफ़्तारी  के बाद कुलबीर अपने माता पिता के साथ  सेंट्रल जेल और बोर्स्टल जेल लाहौर उनसे मिलने जाते थे , देश के हजारो नौजवानों की भाँति  वह भी भगतसिंह को अपना हीरो मानते थे।  भगत सिंह भी उन्हें बहुत चाहते थे , उन्होंने जेल में रहते हुए कुलवीर को ३ पत्र  क्रमशः १६ सितम्बर १९३० , २५ सितम्बर १९३० और ३ मार्च १९३१ को लिखे थे . उन्होंने अंतिम पत्र में कुलबीर के लिए काफी चिंता व्यक्त करते हुए लिखा था कि ''मै तुम्हारे लिए कुछ न कर सका ,तुम्हारी जिंदगी का क्या होगा ,गुजारा कैसे करोगे , यह सोचकर काँप जाता हूँ , मगर भाई हौसला रखना , मुसीबत में भी कभी मत घबराना , आहिस्ता आहिस्ता मेहनत करके पढ़ते जाना ,जानता हूँ कि आज तुम्हारे दिल के अंदर गम का समुन्द्र टाठे मार रहा है ,पर हौसला रखना मेरे प्यारे भाई '' . २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह फांसी पर चढ़कर वतन के लिए शहीद हो गए और क्रांति की विरासत कुलबीर सिंह को सौप गए। कुलबीर सिंह  जल्द ही भगत सिंह के संगठन नौजवान भारत सभा से जुड़ गए।

                      सन १९३५ में जब पंजाब में जॉर्ज पंचम के स्वागत की तैयारी चल रही थी , तब कुलबीर ने अपने साथियो के साथ मिलकर लायलपुर और आस पास के जिलो की बिजली व्यवस्था फ़ैल करके रंग में भंग कर दिया था ,उन्हें गिरफ्तार किया गया , पर सरकार कोई गवाह न मिलने से मुकदमा नहीं चला पायी . इसी साल वह  लायलपुर के जिला बोर्ड के सदस्य भी निर्वाचित हुए।  उन्हें पंजाब किसान सभा का जनरल सेक्रेटरी और कांग्रेस सोशियोलिस्ट पार्टी की प्रांतीय  समिति का सदस्य भी बनाया गया , उन्होंने अनेक किसान आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया ,  १९३९ में उन्हें  Defence of India Rules के तहत  ६ माह जेल की सजा दी गयी ,२६ जून १९४० को वह अपने भाई कुलतार सिंह के साथ फिर गिरफ्तार कर लिए गए उन्होंने जेल में अपने क्रन्तिकारी साथियो धन्वन्तरी , राम किशन भरोलियन ,टीकाराम सुखन के साथ ६३ दिन की लम्बी भूख हड़ताल की, तब वह काफी बीमार हो गए थे , जब माता विद्यावती मिलने आई तो जेल अधिकारियो  ने उन्हें मिलने नहीं दिया , परन्तु माता के प्रचंड विद्रोही स्वरूप के सामने जेल अधीक्षक बुरी तरह घबरा गया , उसने गिड़गिड़ाकर माफ़ी मांगी और कुलबीर को इलाज के लिए लाहौर के मेयो अस्पताल भिजवा दिया। बाद में जेल में राजनैतिक बंदियों की सुविधाओ के सम्बन्ध में यह हड़ताल पूरे देश में फ़ैल गयी , सरदार कुलबीर सिंह को पुनः जेल भेज दिया गया , पर वहाँ  भी उन्होंने संघर्ष जारी रखते हुए३२ दिन की भूख हड़ताल की , इधर देवलाली जेल में जयप्रकाश नारायण , सेठ दामोदर दास  डॉ. जेड. ए. अहमद , एस. ए. डांगे ने भी भूख हड़ताल की .६ माह के अंतराल बाद १९४४ में कुलतार सिंह को फिर गिरफ्तार  कर लिया गया और वह १९४६ तक हिरासत में रखे गए   , फिर लाहौर हाई कोर्ट में याचिका दायर करने पर कुलबीर सिंह , उनके भाई कुलतार सिंह , बहिन बीबी अमर कौर को जेल से रिहा कर दिया गया .

                                                जब देश आज़ादी का सूरज देखने ही वाला था , तब उनके यशस्वी चाचा महान  क्रान्तिकारी अजीत सिंह ३७ साल बाद मुल्क वापस लौटे और देश के बटवारे से दुखी होकर १५ अगस्त १९४७ को ही उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आखे मूँद ली।  स्वाधीनता के उपरांत भी कुलबीर सिंह जी देश और समाज की सेवा में सतत जुटे रहे , १९४८ में उन्हें पंजाब कांग्रेस सेवा समिति का ‘G.O.C.’बनाया गया , कुलबीर सिंह  ने १९६२ में   फिरोज़पुर से लोकसभा चुनाव  जीत कर सांसद  रहे ,उनकी बहिन बीबी अमर कौर ने भी १९६७ में कपूरथला से जनसंघ की टिकिट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था।  उन्होंने युवाओ को अतीत के गौरव और   देशभक्ति  की प्रेरणा देने के लिए '' सरदार कुलबीर सिंह फाउंडेशन  '' की स्थापना की , वह आ. भा. स्वाधीनता संग्राम सेनानी संघ की हरियाणा  शाखा के प्रमुख भी रहे , उन्होंने  Faridabad Branch of Indian Council of World Affairs के प्रेजिडेंट पद पर भी कार्य किया , उन्होंने एक पुस्तक “Revolutionary Movements” Significance and Sardar Ajit Singh” भी लिखी , उन्होंने अपना बाद का जीवन क्रांतिकारियों के दुर्लभ दस्तावेजो के संग्रह में व्यतीत किया , यह उल्लेखनीय है कि भगत सिंह  द्वारा  जेल में लिखी गयी जेल डायरी  उनकी शहादत के २ दिन पहले ही लाहौर के जेलर द्वारा कुलबीर सिंह को  सौपी गयी थी।  १९८२ में उन्होंने क्रान्तिकारी  इतिहास संकलन के कार्य के लिए पाकिस्तान का भी दौरा किया , पर वह २२ अगस्त १९८३ को पुस्तक लेखन का कार्य अधूरा छोड़कर हमेशा  के लिए  अपने भाई शहीद भगत सिंह के पास चले गए। 

                   सरदार कुलबीर सिंह का विवाह  कान्ता  संधु से हुआ था , कुलबीर सिंह के २ पुत्र बाबर सिंह और अभय सिंह एवं २ पुत्री वर्षा बासी  और अमर ज्योति है , कुलबीर सिंह जी की पत्नी श्रीमती कान्ता  संधु एवं बड़े पुत्र बाबर का निधन हो चुका है उनके ५५ वर्षीय  बेटा अभय सिंह ने २०१२ में पंजाब विधानसभा के लिए पीपुल्स पार्टी के लिए चुनाव लड़ा था , वह अपने पिता कुलबीर की स्मृति में स्थापित कुलबीर सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के फाउंडर प्रेजिडेंट है , उनके पुत्र अभितेज सिंह इसके फाउंडर मेंबर है ।सरदार   कुलबीर सिंह को क्रांतिकारी   परिवार की  महान परम्परा के संवाहक के रूप में  शहीद भगत सिंह के साथ सदैव  याद रखा जायेगा। 
                                         
                                                                                                                   - अनिल वर्मा
 



                                      
                                            


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