शहीद भगत सिंह की बहन बीबी प्रकाश कौर

    
    शहीद भगत सिंह की बहन बीबी प्रकाश कौर 
                                                                   - अनिल वर्मा 



                                                     
        

                          
                                                 शेरे हिन्द सरदार भगत सिंह के परिवार को देशभक्ति ,त्याग और बलिदान के अनुपम गुण विरासत में मिले सच्चे मोतियों के समान थे . उनके यशस्वी पिता  किशनसिंह और माता विद्यावती की कुल ९ संतान जगत सिंह , भगत सिंह , बीबी अमर कौर , कुलबीर सिंह , बीबी शकुंतला देवी ,कुलतार सिंह , बीबी प्रकाश कौर , रणवीर सिंह और रजिन्दरसिंह थी , इनमे से जगत सिंह का  तो काफी पहले ही युवावस्था में निधन हो गया  गया था  , फिर इसके बाद   भगत सिंह ने २३ वर्ष की अल्पायु में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूलकर शहीद हो गए थे और इससे पूरे देशवासियों  के साथ ही उनके भाई बहिनो में भी देशभक्ति का जो अनूठा जज्बा जाग्रत हुआ था , वह उन सब में आजीवन यथावत कायम रहा .

                                               प्रकाश कौर जी का जन्म पाकिस्तान के लायलपुर जिले में गांव खासडिय़ां में १९१९  में हुआ था , उन्हें घर में लोग सुमित्रा के नाम से जानते थे ,उन्हें अपने प्रिय प्राजी भगत सिंह के साथ रहने और खेलने कूदने का कम ही अवसर मिल सका , भगत सिंह अल्प  आयु में ही क्रांति के पथ पर चल पड़े थे , वह जान बूझकर घर परिवार से दूर रहते थे , ताकि उनके क्रान्तिकारी अभियानों में कोई  बाधा न पहुंचे। २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह की शहादत के समय प्रकाश केवल १० वर्ष की थी, पर इस घटना ने उन पर गहरा असर डाला था और वह अपने महान भाई के बलिदान गाथाओं से वह पूरे जीवन भर गौरव अभिभूत  रही ।


                                            बीबी प्रकाश कौर का विवाह राजस्थान के गंगानगर  जिला की पदमपुर तहसील के ५ एन एन  के हरबंश सिंह मलहि के साथ हुआ था , प्रकाश कौर में अपने भाई भगत सिंह के समान अदम्य साहस और संघर्ष का अनूठा ज़ज्बा था , वह ६ फीट ऊंची कदकाठी  की   रौबदार व्यक्तित्व की थीं। १९४७ में देश के बटँवारे की त्रासदी के दौरान उन्होंने दंगे रोकने और लोगो के पुनर्वास करने में अहम दायित्व का निर्वाह किया था।  वर्ष १९६७ में उन्होंने पंजाब विधानसभा के आम चुनावों में भारतीय जनसंघ की टिकट पर कोटकपूरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा है,  तब  अकाली दल के उम्मीदवार हरभगवान सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी मेहर सिंह को हराया था, जबकि प्रकाश कौर करीब पांच हजार मत लेकर तीसरे स्थान पर रही थीं । उस समय भारतीय जनसंघ के सीनियर नेता एडवोकेट श्रीराम गुप्ता की अगुवाई में प्रकाश कौर के समर्थन में जोरदार चुनावी मुहिम चली थी और चुनाव प्रचार में शहीद भगत सिंह की माता समेत परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल हुए थे।

                                   सन १९८० में बीबी प्रकाश कौर अपने पति और दोनों पुत्र रुपिंदरसिंह और हकमत सिंह के साथ कनाडा चली गयी और वहीं बस गयी थी , करीब १९९५ में   उनके पति  का निधन हो गया था। इनकी दो बेटियां गुरजीत कौर व परविंदर कौर की होशियारपुर के गांव अंबाला जट्टां के एक ही परिवार में शादी हुई  हैं। गुरजीत कौर अभी गांव में ही रहती हैं , जबकि परविंदर कौर कनाडा में रहती हैं।

                                          इस देश की विडम्बना है कि हमने जिन शहीदों और क्रांतिवीरो के अपार त्याग और बलिदान से यह आज़ादी पायी है , उन्हें भुला दिया गया है , उन्हें और उनके वीर परिवारों को सम्मान देना तो दूर रहा , हमारी पाठ्य पुस्तकों में भगत सिंह और आज़ाद जैसे महान क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखा जा रहा है।  यह दुखद और  कटु सत्य है कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह के  एक रिश्तेदार को आतंकवादी करार देकर पुलिस द्वारा फ़र्ज़ी एनकाउंटर में  गोली मारकर हत्या कर दी गयी और उनके परिजन न्याय  के लिए पिछले २५ साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था , तब १९८९ में प्रकाश कौर की बेटी  सुरजीत कौर के दामाद के भाई और ओलंपियन धर्म सिंह के दामाद अम्बाला के जत्तन गांव के रहने वाले कुलजीत  रहस्यमय ढंग से गायब हो गए थे, उन्हें होशियारपर के गरही  गावं से पंजाब पुलिस ने पकड़ा था ,तब से वह लापता है और ऐसा विश्वास है कि पुलिस ने उनकी हत्या कर दी थी।

                    भगत सिंह की वीरांगना बहन  बीबी  प्रकाश कौर इस मामले में लगातार कनाडा से भारत आकर न्याय के संघर्ष में जुटी रही ,उनके द्वारा  सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट को मामला शीघ्र निपटने के दिशा-निर्देश दिए थे और होशियारपुर के सेशन कोर्ट को जल्दी मामले में सुनवाई पूरी करने के लिए कहा है। जिसके बाद से सुरजीत को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। सुरजीत का परिवार 1989 से ही कुलजीत की रिहाई के लिए प्रयासरत था। बाद में पुलिस ने कहा कि जब कुलजीत को हथियारों की पहचान के लिए ब्यास नदी के नजदीक ले जाया गया था तो वह उसकी गिरफ्त से निकलकर भाग गया था।प्रकाश कौर ने सितंबर 1989 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग गठित किया। आयोग ने अक्टूबर १९९३  में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में पंजाब पुलिस अधिकारी एस. एस.पी अजीत सिंह संधु (जिसने १९९७ में आत्महत्या कर ली ), डी . एस.पी. जसपाल सिंह ,सार्दुलसिंह , एस.पी.एस. बसरा , सीताराम को प्रथम दृष्टया दोषी  होना इंगित किया गया था और यह कहा गया कि पुलिस की कुलजीत के भागने की कहानी काल्पनिक है। यह दुर्भाग्य है कि बीबी प्रकाश कौर के जीवनकाल में यह मामला अंतिम रूप से निराकृत नहीं हो पाया . बीबी प्रकाश कौर अंतिम बार व २००५ में होशियारपुर आई थी।
 
                                        बीबी प्रकाश कौर का  ९४ वर्ष की आयु में गत २८ सितम्बर २०१४  को उनके  भाई शहीद-'ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिन पर ही  ब्रंटन (टोरंटो ) कनाडा में देहांत हो गया है । उस दिन मृत्यु के पूर्व  परिवार के लोग एवं कनाडा के कुछ संगठन के लोग उनसे मिले थे ,भगत सिंह के बारे में चर्चा किये थे  और उनका आशीर्वाद लिए थे।  वह करीब ६ वर्ष से वह लकवा से पीड़ित थी, चल फिर नहीं पाती थी और बिस्तर पर ही थी । उनके देहांत की जानकारी पंजाब के होशियारपुर में रहने वाले उनके दामाद हरभजन सिंह दत्‍त ने दी।प्रकाश कौर के निधन के  बाद अब भगत सिंह  कोई भी भाई बहन जीवित नहीं बचे है ।   बीबी  प्रकाश कौर ने मृत्यु के चार दिन पहले बुलंद हौंसले के साथ अपनी बेटी गुरजीत कौर से कनाडा में यह कहा था कि जिंदगी में कभी हौंसला मत हारना। प्रकाश कौर  ने तो अपने महान भाई का अनुसरण करते हुए अपना पूरा जीवन देश और समाज के लिए बुलंद हौसलों के साथ भरपूर जिया , उन्होंने अपनी राखी भी आज़ादी के हवन कुण्ड में समर्पित कर दी थी , पर  हम कृतघ्न देशवासी उन्हें सम्मानपूर्वक श्रद्धांजलि भी नहीं दे सके है , यह उनका नहीं वरन हमारा ही दुर्भाग्य है।  
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        -अनिल वर्मा                  








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