क्रांतिकारी आंदोलन में अमरशहीद चंद्रशेखर आजाद का अविस्मरणीय योगदान सर्वविदित है। वे फरार रहने के दौरान सन 1927 में राम राजा की पावान नगरी ओरछा आये और 1930 तक यही रहे । आजाद ओरछा से मात्र डेढ़ मील की दूरी पर सातार नदी के तट पर कुटिया में रहने लगे थे । जहां मात्र एक कम्बल और रामायण का गुटका उनकी जायदाद थी। आजाद ने ओरछा में प्रवास के दौरान अपना नाम हरिशंकर ब्रह्मचारी रख लिया। वे पास के गांव ढिमरपुरा में बच्चों को पढ़ाते थे, मधुकरी मांगकर गुजारा करते थे, रामायण बांचते थे।
वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे। लेकिन यहाँ सब लोग उन्हें ब्रह्मचारी जी के नाम से ही जानते थे। नंबरदार ठाकुर मलखान सिंह तो ब्रह्मचारी जी को अपना सगा भाई मानते थे और अपनी बंदूकें उन्हें निशानेबाजी के लिए सौप दी थी। यह कोई भी नहीं जानता था कि वे आजाद हैं ।
आजाद ओरछा में रहकर क्रांति के सूत्रों का तानाबाना बुनते रहते थे और काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारी आन्दोलन के ध्वस्त तारों को जोड़ते थे। सन १९२९ में ओरछा में जब वायसराय लार्ड इरविन आये ,तो ‘ब्रह्मचारी जी’की अचूक निशानेबाजी को देखकर ठा. मलखान सिंह कहते थे कि' कहीं तुम लाटसाब को निशाना बनाकर चटकाने की फिराक में तो नहीं हो।' हालाकि ओरछा नरेश के निवेदन पर आज़ाद उस समय रियासत के बाहर चले गए थे।
1927-30 की अवधि में उत्तर और पश्चिम भारत में क्रांति की सभी गतिविधियों का संचालन आजाद उर्फ ब्रह्मचारी जी ने ओरछा से ही किया। झांसी के सदाशिव मलकापुरकर, विश्वनाथ वॆशम्पयन, भगवानदास माहौर और कुंदनलाल को क्रांतिमन्त्र यहीं से दिए गए । सरदार भगतसिंह, शिव वर्मा, राजगुरु ,सुरेन्द्रनाथ पांडेय आदि के साथ क्रांतिकारी गतिविधिया संचालित करने के लिये वे ओरछा से कानपुर, दिल्ली और लाहौर तक जाते रहते थे। अंत में जब पुलिस की सक्रियता बढने पर वो ओरछा से जाने लगे, तब ठा. मलखान सिंह के रोकने पर आज़ाद ने कहा था कि' ठाकुर साहब यदि ब्रिट्रिश हूकुमत को यह पता चल गया कि आपने मुझे शरण दी है तो वह आपके घर में चिराग जलानें वाला भी न छोडेगे।'अंततः 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गये। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा झाँसी से करीब ८-१० कि.मी. दुरी पर स्थित ओरछा जिला
टीकमगढ़ (म. प्र .) में इस अमरशहीद का स्मारक बना हुआ है,जो क्रांति के मतवालों का पावन तीर्थ है।सन १९८४ में आज़ाद की मूर्ति का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी ने किया था ।यहाँ पर आजाद द्वारा स्थापित हनुमानजी का मंदिर, उनकी कुटिया ,कुआ ,सुरंग ,वो नीम का पेड़ जहाँ वो बच्चों को पढ़ाते थे, ठा. मलखान सिंह की वो हवेली जहाँ युवती के आसक्त होने पर आज़ाद छत से कूदकर भाग गए थे सब कुछ यथावत् मौजूद है , बस कमी है तो ,उन्हें देखने वालो की ।मेरा यह मत है कि यहाँ आजाद पर शोध संस्थान और संग्रहालय भी स्थापित किया जाना चाहिए। मैंने 27 फरवरी 2010 को आजाद की पुण्यतिथि पर ओरछा मे एक विशाल समारोह आयोजित किया था ,जिसमे अमर शहीद भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन पधारे थे और उन्होने मेरी पुस्तक " सातार तट और आजाद'' का विमोचन किया था । -अनिल वर्मा