अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद की पूज्य माता श्रीमती जगरानी देवी पर यह देश की पहली पुस्तक मेरे द्वारा लिखित है, जिसका विमोचन माताजी की पुण्यतिथि २२ मार्च, २०११ को, उनकी बडगांव, झाँसी, उ. प्र. में बने समाधि स्थल पर आजाद के वफादार साथी श्री सदाशिव राव मलकापुरकर के भतीज़े श्री हेमंत मलकापुरकर ने किया था।
वो भारत माता के लिए शहीद होने वाले इस महान सपूत को जन्म देने वाली माता थी।आजाद सहित उनके पांचो पुत्र काल कलवित हो गए थे।२७ फरवरी १९३१ को आज़ाद की शहादत के ३ साल बाद पति श्री सीताराम तिवारी का भी निधन हो गया।देश आजाद होने के बाद भी माताजी अति गरीबी में भाभरा, जिला झाबुआ, म.प्र. में भीलो के बीच असहाय अकेले जीवन गुजर रही थी, वह किसी तरह से कोदों-कुटकी खाकर टूटी-फूटी झोपडी में रहती थी । तब सन १९४९ में सदाशिवजी उन्हें अपने घर रहली, जिला सागर ले आये थे, एक पुत्र की भाँति उन्होंने माताजी की जीवन संध्या में बहुत सेवा की, माताजी कहती थी कि यदि चंदू (चन्द्रशेखर आज़ाद) जिन्दा भी रहता तो ,वह सदु (सदाशिव) से ज्यादा क्या सेवा करता , सदाशिव जी ने उन्हें चारों तीर्थों की यात्राये करायी थी।माताजी के अंतिम दिनों में सदशिवजी के भाई क्रांतिकारी शंकर राव की पत्नी शांता ताई ने माताजी की बहू समान सेवा की थी , ९६ वर्षीय शांता ताई आज भी माताजी को बड़ी शिद्दत से याद करके भावुक हो जाती हैं।
माताजी ने २२ मार्च १९५१ को झाँसी में सदाशिव जी की बाहों में ही अंतिम सांसें ली थी, परन्तु यह दुर्भाग्य हैं कि आजाद की माता को कभी भी एक शहीद की माता का सम्मान नसीब ना हो सका।
माताजी ने २२ मार्च १९५१ को झाँसी में सदाशिव जी की बाहों में ही अंतिम सांसें ली थी, परन्तु यह दुर्भाग्य हैं कि आजाद की माता को कभी भी एक शहीद की माता का सम्मान नसीब ना हो सका।
- अनिल वर्मा
माता जी की मूर्ति लगाने का प्रयास हुआ था जो सफल नहीं हुआ था । उस पर प्रकाश डाले प्लीज।
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