Capt. Laxmi Sahgal

              
         
          महान वीरांगना कैप्टन लक्ष्मी सहगल 

                                      
                                                                                                                               - अनिल वर्मा

                  शहीदों तुमको मेरा सलाम। …… याद करें  नेता जी सुभाष  चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज की महान सेनानी कैप्टन  लक्ष्मी  सहगल को ,वह भारत की उन महान महिलाओं में से थीं, जो बहादुरी और सेवा भावना के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण के लिए जीवन पर्यंत याद की जायेंगी।

                                                             
मद्रास उच्च न्यायालय के सफल वकील डॉ0 स्वामिनाथन के यहाँ २४ अक्टूबर १९१४ को जन्मी लक्ष्मी को समाज सेवा और देश के लिए कुछ करने का ज़ज्बा अपने परिवार से विरासत में मिला था ,उनकी माँ अम्मुकुट्टी समाज सेविका और स्वाधीनता सेनानी थीं,उन्होंने गरीबों की सेवा के लिए चिकित्सीय पेशा चुना। उनके संघर्ष की शुरुआत सन १९४० से हुई।  मद्रास मेडिकल कालेज से १९३८ में डाक्टरी की पढाई करने के दो वर्ष बाद वह सिंगापुर चली गयीं । वहां एक क्लीनिक खोली ,गरीब मरीजों का इलाज करना और देश को आजाद कराना उनका लक्ष्य बन गया था । दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था , सिंगापुर में उन्हें ब्रिटिश सेना से बचने के लिए जंगलों तक में रहना पड़ा। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से मुलाकात के बाद उन्होनें आजाद हिंद फौज की रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट में २ अक्टूबर, १९४३ को  कैप्टन का पद संभाला  , बाद में उन्हें कर्नल का पद भी मिला, जो एशिया में किसी महिला को पहली बार मिला था। लेकिन लोगों ने सदेव उन्हें कैप्टन लक्ष्मी सहगल के रूप में ही याद रखा। वह  अस्थाई आजाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला मंत्री  भी बनीं।  सुभाष चंद्र बोस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सेना में रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किए। उनके नेतृत्व में आजाद हिंद फौज की महिला बटालियन रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट में कई जगहों पर अंग्रेजों से मोर्चा लिया और अंग्रेजों को बता दिया कि देश की नारियां चूड़ियां तो पहनती हैं, लेकिन समय आने पर वह बंदूक भी उठा सकती हैं और उनका निशाना पुरुषों की तुलना में कम नहीं होता है । मलायां पर हमले के बाद उन्हें जंगलों तक में भटकना पड़ा ! एक बार तो दो दिन तक जंगलों में पानी तक नसीब नसीब नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं खोया। अन्तः ब्रिटिश सेनाओं ने उन्हें ४ मार्च१९४६  को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।विश्वयुद्ध के मोर्चों पर जापान की पराजय के बाद सिंगापुर में पकडे गये आज़ाद हिन्द सैनिकों में कर्नल डॉ लक्ष्मी स्वामिनाथन भी थी.भारत लाये जाने के बाद उन्हें बरी कर दिया गया।        

                                                                                                    
                                     सन १९४७  में लाहौर में आज़ाद हिन्द फौज के सेनानी कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह करने के बाद वह कानपुर आकर बस गयीं,वह १९७१ में राज्यसभा की सदस्य भी बनी । उन्होंने  कानपुर  के आर्यनगर की पतली सी गली में अपनी क्लीनिक के जरिये पांच दशकों तक गरीब मरीजों की सेवा की। पर स्वाधीन भारत में किसी ने उनकी कदर नहीं की, पर वह बिना किसी शिकायत के   ख़ामोशी से समाजसेवा के कार्यो में जुटी रही ,अंतिम बार वे लाइम लाइट में उस समय आई ,जब उन्होंने अब्दुल कलाम साहब के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था । उनकी पुत्री सुभाषिनी अली भी कानपुर से लोकसभा सांसद रही है  सुभाषिनी और उनके फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता मुज़फ्फर अली के पुत्र शाद अली साथिया, बंटी और बब्ली आदि फिल्मों के सफल निर्देशक रह चुके हैं।

              जंगे -ए-आजादी की सिपाही डा० लक्ष्मी सहगल जीवन की आखिरी वक़्त तक सक्रिय रहीं।  बीमार होने से एक दिन पहले तक भी आर्यनगर स्थित अपने क्लीनिक में उन्होंने मरीजों का इलाज किया था ,९८  वर्ष की उनकी उम्र का हर पल सेवा के लिए ही समर्पित रहा।उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से २३ जुलाई १९१२की सुबह ११.२०  बजे कानपुर के हैलेट अस्पताल में हुआ था। उनकी अंतिम इच्छानुसार उनकी आंखे और  मृत शरीर कानपुर मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया गया था।
           

                             यह मेरा परम सौभाग्य हें कि  इस महान  व्यक्तित्व से मेरी अनेक  मुलाकाते हुई , मैने उन्हें २ बार अपनी पुस्तकें भेट की थी।  मुझ पर उनका स्नेह और आशीर्वाद हमेशा रहा , प्रस्तुत है  उनके साथ मेरा  एक फोटो


                    
युवावस्था में

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ आज़ाद हिन्द फ़ौज़ में


कर्नल ढिल्लन और कर्नल यादव के साथ
कर्नल गुरुबुक्स सिंह एवं  प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव 

अनिल वर्मा उनके साथ



राष्ट्रपति से पदमश्री से सम्मानित

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