क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त की बेटी डॉ. भारती बागची
महान क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ ८ अप्रैल १९२९ को नईं दिल्ली की सेंट्रल अस्सेम्बली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य को समूल हिला दिया था . उनके साथी भगत सिंह , सुखदेव, राजगुरु ,चन्द्रशेखर आज़ाद आदि एक-एक करके वतन के लिए शहीद होते चले गए . दत्त बाबू को असेंबली केस में कालापानी की सजा हुए थी. उन्होंने १० वर्ष तक अंदमान की नारकीय जेल में कालापानी की सजा भोगी थी और फिर देश के आजाद होने तक भी काल कोठरियों में बंद रहे . परन्तु यह विडम्बना है कि स्वाधीन भारत में उन्हें असहाय, निर्धनता, गुमनामी और जिल्लद भरी जिन्दगी ही नसीब हुई थी . वह महान क्रांतिवीर जिसके भगत सिंह के साथ फोटो असेम्बली बम कांड के बाद देश के हर घर ,चाय पान की दुकानों तक में शीशे से मढे होते थे , वही स्वाधीनता के उपरांत सिगरेट कम्पनी में मामूली एजेंट के रूप में दर-दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर हो गया था .उन्होंने उपेझा का हर दंश सहन किया , पर स्वाभिमान से तना उनका शीश कभी नहीं झुका .
भगत सिंह के परिवार के साथ |
माता पिता और माता विद्यावती के साथ |
भारतीजी,प्रो. जगमोहन, तिवारीजी और अनिल वर्मा |
डॉ. भारती बागची दत्त |
महान क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ ८ अप्रैल १९२९ को नईं दिल्ली की सेंट्रल अस्सेम्बली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य को समूल हिला दिया था . उनके साथी भगत सिंह , सुखदेव, राजगुरु ,चन्द्रशेखर आज़ाद आदि एक-एक करके वतन के लिए शहीद होते चले गए . दत्त बाबू को असेंबली केस में कालापानी की सजा हुए थी. उन्होंने १० वर्ष तक अंदमान की नारकीय जेल में कालापानी की सजा भोगी थी और फिर देश के आजाद होने तक भी काल कोठरियों में बंद रहे . परन्तु यह विडम्बना है कि स्वाधीन भारत में उन्हें असहाय, निर्धनता, गुमनामी और जिल्लद भरी जिन्दगी ही नसीब हुई थी . वह महान क्रांतिवीर जिसके भगत सिंह के साथ फोटो असेम्बली बम कांड के बाद देश के हर घर ,चाय पान की दुकानों तक में शीशे से मढे होते थे , वही स्वाधीनता के उपरांत सिगरेट कम्पनी में मामूली एजेंट के रूप में दर-दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर हो गया था .उन्होंने उपेझा का हर दंश सहन किया , पर स्वाभिमान से तना उनका शीश कभी नहीं झुका .
बटुकेश्वर दत्त का विवाह उनके जन्मदिन १८ नवम्बर१९४७ को अंजलि देवी से हुआ था . अंजलि देवी का बचपन अपार वैभव और एश्वर्य में गुजरा था , पर दत्त बाबू के साथ उन्होंने नितांत निर्धनता और तंगहाली को झेलते हुए भी एक आदर्श भारतीय नारी की भांति अपने पति का साथ खूब निभाया . दत्त बाबू की एकलौती बेटी भारती का जन्म ८ जून १९४९ को पटना में हुआ था , उन्होंने बेटी को विरासत में अनमोल संस्कार दिए थे . भारतीजी यह बताती है कि उन्होंने अपने महान पिता से बहुत कुछ सीखा था , कभी झूठ न बोलना , सबकी मदद करना और अनुशासन में रहकर देश और समाज के कल्याण के लिए कार्य करना , ये सब गुण पिता से ही प्राप्त हुए थे .दत्त बाबू की जन्म शताब्दी पर सन २०१० में नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक '' बटुकेश्वर दत्त : भगत सिंह के सहयोगी '' की रचना यात्रा के दौरान मुझे अक्टूबर २००९ में पटना में डॉ. भारती बागची दत्त से अनेक बार वार्तालाप करके इतिहास को खखालनें का सौभाग्य मिला था , तब भारती जी ने यादों के बवंडर में डूबता-उतरते रुंधे कंठ से यह भी बताया था कि उनके पिता उनके लिए बहुत भावुक थे , जब वह सन १९६५ में दिल्ली के अस्पताल में मृत्यु शैय्या पर थे , तब उन्होंने उनका हाथ पकड़ कर यह कहा था कि '' बेटा भावुकता को जीवन में अधिक स्थान न देना , इसका कोई मोल ना होगा और मन को कष्ट ही होगा ''. भारती जी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार करके बेटी के साथ बेटे का भी दायित्व निर्वाह किया था .
सन १९६५ में दत्त बाबू की मृत्यु के समय भारती ने कालेज में प्रवेश लिया ही था, माँ अंजलि देवी ने स्कूल की छोटी सी नौकरी उनका पालन पोषण किया , भारतीजी ने अर्थशास्त्र में पी. एच. डी. की है और वर्तमान में वह पटना के मगध कालेज में अर्थशास्त्र की रीडर है . सन १९६९ में भारती का विवाह होने पर अमरशहीद भगत सिंह की माता विद्यावती देवी ने उन्हें घर की बेटी मानते हुए शादी का जोड़ा, गहने और अन्य भेंट भेजी थी . उनके पति भी मगध कालेज में प्रोफ़ेसर थे , उनकी सन २००६ में मृत्यु हो चुकी है , उनके ३ बेटे है . भारती जी अपने पिता की भांति ही मृदु भाषी ,अत्यंत्र शांत और सरल स्वभाव की है . इस लेखक को उनसे मौसीजी के रूप में माता के समान स्नेह प्राप्त होता है .
यह नैराश्य पूर्ण बात है कि पटना में न्यू जक्कनपुर स्थित जिस मकान में बटुकेश्वर दत्त अपने अंतिम दिनों में रहते थे , उसे आज तक राष्ट्रीय धरोहर धोषित नहीं किया जा सका है , दत्त बाबू को उनके जीवनकाल में स्वाधीनता सेनानी का दर्ज़ा तक न मिल सका था , उनकी मृत्यु के ४८ साल बाद भी अब तक उन पर कोई डाक टिकट जारी नहीं किया गया ,जबकि एक एक रन के लिए लाखो करोडो रूपये कमाने वाले पेशेवर क्रिकेटर सचिन तेदुलकर पर कई डाक टिकट जारी हो रहे है , पटना सहित पूरे देश में उनकी एक भी मूर्ति नहीं है , सन १९६५ में उनके घर को जाने वाली जिस गली का नाम ' बी. के . दत्त लेन ' रखा गया था , उसी नाम पट्टिका के बोर्ड के नीचे मोहल्ले भर का कचडा फेका जाता है . यह विडम्बना है कि इस देश में जहाँ क्रिकेटर्स , फ़िल्मी कलाकारों और नेताओ और पूंजीपतियों को तो भगवान की तरह पूजा जा रहा है , पर देश को आजाद कराने वाले महान स्वाधीनता सेनानियों और क्रांतिकारियों को भुला दिया जाता है , बटुकेश्वर दत्त ने अपना पूरा जीवन देश के लिए कुर्बान कर दिया, पर इसी देश ने उन्हें और उनके परिवारजनों को विस्मृत कर दिया . दत्त बाबू की पत्नी और बेटी भारती को मेरी पुस्तक प्रकाशित होने के पहले तक बिहार सरकार से कभी कोई मदद नहीं मिली , यहाँ तक कि उन्हें किसी कार्यक्रम में आमन्त्रित भी नहीं किया जाता था , हालाकि अब इस हालत में कुछ मामूली सुधार आया है , यह हम भारतवासियों का दुर्भाग्य है कि हम ना तो इस महान क्रान्तिकारी की स्मृतियों को उचित रूप से संजो पाए है और न ही उनके वंशजो को यथोचित सम्मान दे सके है .
'' जालिम फलक ने लाख मिटने की फिक्र की ,
हर दिल में अक्स रह गया , तस्वीर रह गई.''
- अनिल वर्मा
Hi sir
ReplyDeletemy name Batukeshwer soni I want full address of bharti ji plz send me at
granthjewllers@gmail.com