-अनिल वर्मा
भगत सिंह के युग के उनके क्रान्तिकारी साथी अजय कुमार घोष लाहौर षड़यंत्र केस में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु एवं बटुकेश्वर दत्त के साथ जेल में निरुद्ध थे , उन्होंने सेंट्रल जेल लाहौर में कैद के दौरान प्रखर जीवटता से ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म सितम सहन किये थे ,पर स्वाभिमान से तना शीश ना झुकने दिया था। हालांकि उस मामले में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा हुई थी , पर सबूत के अभाव में अजय घोष को बरी कर दिया गया था। क्रांतिकारी युग के अवसान उपरांत उन्होंने सन 1933 में कम्युनिस्ट पार्टी से नाता जोड़ लिया , एक क्रांतिकारी से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के साम्यवादी तक की उनकी जीवनयात्रा रही।
अजय घोष का जन्म 20 फ़रवरी 1909 को बंगाल के मिहजम(अब चितरंजन) में हुआ। उनके बाबा ने उस गाँव के निकट बहने वाली नदी के नाम पर ही उनका नाम अ जय रख दिया था। अजय घोष के पिता का नाम शचीन्द्र नाथ घोष पेशे से डाक्टर थे और माँ का नाम सुधान्शु बाला था। अजय चार भाई और दो बहन थे। उन्होंने प्रारंभिक विद्यार्थी जीवन आदर्श बांग्ला विद्यालय से शुरू किया , वह मिडिल की परीक्षा में प्रथम आए। वे आगे चलकर विज्ञान के विद्यार्थी बने, साथ ही उन्हें बंगला समेत साहित्य में बड़ी रुचि थी । स्कूल में तरुण भट्टाचार्या द्वारा स्थापित तरुण संघ में वे शामिल हो गए। वे रामकृष्ण मिशन के कामों में भी भाग लिया करते थे, दिलचस्प बात यह है कि भविष्य के सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी विजय कुमार सिन्हा और बटुकेश्वर दत्त भी इसी संघ में शामिल थे। सुरेश बाबू वास्तव में यू0पी0 के क्रांतिकारियों के संगठन कर्ता थे, वे अजय के लिए एक आदर्श थे।
1921 में अजय के स्कूल में देशबन्धु सी0आर0 दास की गिरफ्तारी के विरुद्ध छात्रों की हड़ताल हो गई, जिसमें उन्होंने सक्रियता से भाग लिया। अजय ने 1920-22 के असहयोग आंदोलन में वालंटियर बनने की कोशिश भी की, लेकिन कम उम्र के कारण उन्हें इजाजत नहीं मिली। बटुकेश्वर दत्त और विजय कुमार सिन्हा अजय के घर नियमित रूप से आया करते थे। अजय के पिता ने उन्हें क्रांति पथ पर अग्रसर होते देखकर भी कोई दखल नहीं दिया ,वरन उन्हें पूरी आजादी दी। 1922 में अजय को राजकीय कालेज में भर्ती कर दिया गया। साहित्य में गहन रूचिके आधार पर उन्होंने विजय के साथ मिलकर तीन वर्षों तक 'निर्मला 'नाम की एक पत्रिका भी निकाली। 1924 में अजय कानपुर के क्राइस्ट चर्च कालेज में भर्ती हुए। उन्होंने बम बनाने का तरीका जानने केलिए केमिस्ट्री और विज्ञान का विशेष तौर पर अध्ययन किया । उन्होंने रेड बंगाल नामक एक पत्रिका का वितरण करना भी शुरू किया, साथ ही पिस्टल चलाने में भी निपुणता हासिल की ।
1926 में अजय घोष इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में भर्ती हो गए और 1929 में उन्हें बी0एस सी0 की डिग्री मिली। वे हिन्दू हास्टल में रहा करते थे।यहाँ उनका कमरा क्रांतिकारी गतिविधियों का केन्द्रबिन्दु बन गया था । उनके कमरे में भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, शिव वर्मा और अन्य क्रांतिकारी आते थे और बैठक करनेके अलावा कभीकभार रहते भी थे,इसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ अनेक क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लिया ।
सन 1928 में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकलन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य के नाते भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु एवं बटुकेश्वर दत्त के साथ उन पर भी लाहौर षड़यंत्र काण्ड में मुकद्दमा चला । उनके जेल से बाहर आने तक क्रांतिकारी दल छिन्न भिन्न हो चुका था , 1933 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से नाता जोड़ लिया , 1934 में उन्हें सी.पी.आई. का केन्द्रीय कमेटी सदस्य और 1936 में पोलित ब्यूरो सदस्य निर्वाचित किया गया तथा 1951 में उन्हें इसका महासचिव निर्वाचित किया गया। कामरेड अजय घोष ने 1951 से 1962 तक महासचिव के रूप में यू.पी. और समूचे देश में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को सुस्थापित किया । सन १९५२ में स्वतन्त्र भारत में प्रथम आम चुनाव में उनके अनथक प्रयासों से दल को अच्छी सफलता मिली।
उसने 1945 में " भगत सिंह एण्ड हिज कामरेड्स" शीर्षक से एक पुस्तक लिखी थी. इसमें उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन , लाहौर षड़यंत्र केस तथा बंदी जीवन के अनुभव सहज भाव से अंकित किये थे , साथ ही इसमें अपने सभी क्रांतिकारी साथियों के संस्मरण अंकित किये थे। 13 जनवरी 1962 को अजय घोष का निधन हो गया और इसके साथ ही क्रान्तिकारी आंदोलन के एक और अध्याय का समापन हो गया।
- अनिल वर्मा