-अनिल वर्मा
वह स्थान जहाँ विद्यार्थी जी को अंतिम बार देखा गया |
बन्दुकेश्वर मंदिर के ऊपर स्थित विद्यार्थी जी का स्मारक |
२३ मार्च १९३१ को भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की फाँसी होने की खबर से पूरे देश में बेहद सनसनी फैल चुकी थी , कानपुर नगर कांग्रेस कमेटी ने २४ मार्च को शहर बंद का आव्हान किया था , हिन्दुओं ने तो अपनी दुकाने बंद रखी थी ,पर कुछ मुस्लिम दुकानदारो की दुकानों पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को पिकेटिंग करना पड़ी थी और दोनों सम्प्रदायों के मनमुटाव का लाभ उठाकर ब्रिटिश हुकूमत ने फूट डालो राज करो की रणनीति से इस राष्ट्रवादी आंदोलन को हिन्दू मुस्लिम दंगो का विकराल रूप दे दिया।
गणेश शंकर विद्यार्थी जी सयुंक्त प्रान्त कांग्रेस कमेटी के प्रेसिडेंट होने के नाते २७ मार्च को कांग्रेस के राष्ट्रीय सम्मलेन में कराची जाने वाले थे , पर इस विषम स्थिति में उन्होंने कानपुर में ही रुकने का निर्णय लिया, क्योंकि कानपुर में वही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे ,जो हिन्दू मुस्लिम दोनों को समान रूप से प्रभावित कर सकते थे । परन्तु विद्यार्थी जी के अनुरोध के बावजूद स्थानीय अधिकारीयों ने दंगाइयों पर अंकुश लगने की दिशा में कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया , अपितु यह कहना उचित होगा कि प्रशासन ने ३ दिन तक दंगाइयों को खुली छूट दे दी थी। विद्यार्थी जी ने प्रताप का एक विशेष अंक निकालकर लोगो से कौमी एकता बनाये रखने की अपील की , पर २४ मार्च १९३१ को कानपुर में भयानक सांप्रदायिक दंगा हुये , जिसमे ५०० लोग मारे गए , हज़ारो घायल हुए ,हज़ारो मकान और दुकाने नष्ट कर दी गयी। अपनी जान की परवाह किये बिना विद्यार्थी जी दंगाग्रस्त इलाकों से लोगो को बचाने में जुट रहे और उन्होंने सैकड़ो हिन्दू और मुसलमानों की जान बचायी।
२५ मार्च को दंगे काबू से बाहर हो गए , उस दिन विद्यार्थी जी अपने घर से सुबह ९ बजे ही यकायक निकल गए थे ,न तो उनके सिर पर टोपी थी और न ही पैरो में जूता। बादशाही नाके पर सड़क अवरोध ,कोतवाली पर ईट पत्थर पथराव ,कोतवाली, मूलगंज , ठठेरी बाजार ,चूक बाजार , सराफे में तनाव की खबरों के बावजूद भी प्रशासन ने शांति बनाए रखने के कोई गम्भीर कदम नहीं उठाये। जब दिन के डेढ़ बजे मेस्टन रोड में भीषण लूटपाट और आगजनी होने लगी थी ,तब सच्चे और बहादुर विद्यार्थी जी ने वहाँ लोगो को समझाने का प्रयास किया , पर दंगा फसाद जोर पकड़ गया था , २ दंडाधिकारियों की मौजूदगी के बावजूद मेस्टन रोड के मंदिर और चौक बाजार की मस्जिद में आग लगा दी गयी , शाम ४-५ बजे तक स्थिति और विकराल हो गयी , विद्यार्थी जी ने उस दिन श्रीमती इंदुमती गोयनका को लिखे गए अपने अंतिम पत्र में दुखी मन से यह यह लिखा था कि 'पुलिस का ढंग बहुत निंदनीय हैं , मंदिर मस्जिद में लोगो को आग लगते हुए , लोगो के साथ मारकाट होते और दुकाने लुटते हुए पुलिस खड़ी खड़ी देखती रहती हैं '. डिप्टी कलेक्टर तकी अहमद ने जाँच समिति में दिए गए अपने बयान में यह बताया था कि जब वह कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पंहुचा ,तब मारकाट इटावा बाजार तक फैल चुकी थी , गणेशशंकर विद्यार्थी ने वहां पहुंचकर काफी मुस्लिम लोगो की जान बचाई थी , फिर इटावा बाजार में दंगा करने वाली भीड़ ने बंगाली मोहाल की ओर जाकर भयानक हत्याएं की, विद्यार्थी जी ने आगजनी के बीच बहुत से मुस्लिमो को जलते हुए मकानों से बाहर निकालकर बचाते हुए रामनारायण बाजार पहुंचाया था ।
तत्पश्चात् गणेशशंकर विद्यार्थी मिश्री बाजार और मछली बाजार होते चौबेगोला पहुंचे , तो उनके साथ जो २ सिपाही डयूटी पर थे , वे भी उन्हें अकेला छोड़कर चले गए , पर विद्यार्थी फिर भी कुछ कार्यकर्ताओ के साथ हालात से जूझते रहे , वह अपने हितैषी कार्यकर्ताओ की अनसुनी करके दंगाई इलाके में अकेले ही घुस गए , चश्मदीद माधो प्रसाद के आँखों देखे विवरण अनुसार ,विद्यार्थी जी चोबेगोला ३-४ बजे के बीच पहुंचे थे , वह स्थान मेस्टन रोड की मस्जिद के समीप ही था ,वहां दंगो ने भीषण रूप धारण कर लिया था , कुछ कार्यकर्ताओं ने भीड़ को शांत करने के लिए उन्हें कुछ बोलने के लिए कहा। कांग्रेस जाँच समिति के निष्कर्षो के अनुसार वहाँ पर भीड़ में करीब २०० मुसलमान थे। भिक्खू अखाड़ा के चुन्नी खां खलीफा और अन्य ५-७ प्रतिष्ठित व्यक्तियों से विद्यार्थी जी ने हाथ मिलाया था तथा उन्हें गले से लगाया था , फिर चुन्नीखां और उनका एक साथी उन्हें एक अन्य दंगाई इलाके में ले गए. चौबेगोला पहुंचकर तो वह एकदम अकेले रह गये थे।
एक और चश्मदीद गवाह गणपतसिंह के बयान के मुताबिक गणेशशंकर विद्यार्थीदंगा पीड़ितों को बचाने के प्रयास में जनसमुदायों के बीच फँस गए थे , एक झुण्ड मकरमण्डी की और से आ रहा था और दूसरा नए चौक से। यही स्थान था जहाँ भीड़ में से कुछ लोगो ने उन पर लाठी प्रहार किया था ,क्योंकिं वह सैकड़ो मुसलमानो का जीवन बचा चुके थे ,इसलिए एक प्रमुख मुस्लिम कार्यकर्त्ता के हस्तछेप पर उन्हें छोड़ दिया गया। परन्तु सहसा दूसरी और से आ रही भीड़ ने उन्हें गली की ओर घसीटना शुरू किया , उन्होंने अपने बचाव में कहा कि '' वह भागेंगे नहीं, एक दिन तो उन्हें भी मरना ही हैं , अतः वह मौत से नहीं डरेंगे और कर्तव्यपालन करेंगे '', पर उनके विनीत शब्दों का दंगाईयो पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा , उन्होंने चारो ओर से उन पर प्रहार किये । उनका एक साथी वही मार दिया गया ,दूसरे कार्यकर्त्ता को भी छुरा भौक दिया गया। जब उनका नंबर आया तो , एक हत्यारा उनकी ओर बढ़ा ,विद्यार्थी जी ने अपना सिर नीचा कर लिया ताकि वह उन्हें मार सके। उसी समय उनकी पीठ में छुरा भौक दिया गया , एक अन्य हत्यारे ने उन पर खंता (कुल्हाड़ी ) से वार किया ,जिससे वह धराशाही हो गए। फिर दो दिन बाद अस्पताल में लाशों के ढ़ेर में से उनके सड़ गल गए पार्थिव शव को बमुश्किल पहचाना गया ।
उन्होंने मात्र ४१ वर्ष की अल्पायु में हिन्दू मुस्लिम कौमी एकता के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी । गत २३ मार्च २०१६ को मैने भगतसिंह के अनन्य साथी क्रांतिकारी डॉ. गयाप्रसाद के सुपुत्र क्रांति कुमार कटियार के साथ गहन शोध कार्य कर , इन सब उल्लेखित स्थानों को चिन्हित करके , इतिहास ८५ साल बाद पुनर्विलोकन करने की कोशिश की थी , तो यह पाया कि अब भी वहां सन १९३१ के दौर के यह सब मोहल्ले तो यथावत मौजूद हैं , चौबे गोला में जिस जगह विद्यार्थी जी ने अपना अंतिम संदेश दिया था ,वहाँ अब श्री बाबा बन्दुकेश्वर हनुमान जी का एक मंदिर हैं , जिसके ऊपर के भाग में अशोक चिन्ह और उसके नीचे विद्यार्थी जी एक छोटी सी प्रतिमा बनी हैं उसके नीचे प्रताप में स्थायी रूप से छपने वाला एक शेर लिखा हुआ हैं। बस यही इस महान देशभक्त गणेश शंकर विद्यार्थी का गुमनाम स्मारक , जहां शायद ही कोई पहुँच कर श्रद्धासुमन अर्पित कर पाता होगा। गणेश शंकर विद्यार्थी जी वतन की आज़ादी और सांप्रदायिक एकता के लिए शहीद हो गए, पर आम हिन्दुस्तानी के दिल में वह सदा अमर रहेंगे और उनके महान बलिदान और देशप्रेम की अनुपम गाथाएं युगों तक देशवासियो को प्रेरणा देती रहेगी।
Bhart ne ek hira kho diya
ReplyDeleteसर्वपंथ समादर का प्रतीक शहादत भारतीयों को युगों-युगों तक शक्ति देगा।
ReplyDeleteYes. I had heard all these details from my father Dr.M.L.Vidyarthi . In Indore, where I stay , make it a point to be at his statue on 25th March at 8.30 am , put up by Congress and Shram jeevo Patrakar Sangh. No doubt he was very brave.
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