- अनिल वर्मा
८ अप्रैल सन १९२९ को दिन के करीब ११ बजे अमरशहीद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश हुकूमत के शोषण के खिलाफ सुसुप्त जनमानस को जाग्रत करने के लिए सेंट्रल असेंबली की पब्लिक गैलरी से बम विस्फोट किया था , हालांकि उससे किसी को चोट नहीं आई थी ,पर चारो ओर भीषण भगदड़ मच गयी थी , तभी बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंका गया गुलाबी रंग के पर्चो के एक पुलिंदा फड़फड़ाते हुए पत्तों की बौछार की तरह गैलरी के नीचे आया। उन पर्चो ने जमीन का भाग और कुछ कुर्सियों को ढक लिया था. अंग्रेजी भाषा में लिखे गए इन पर्चो का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत हैं -
पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जानेवाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है। आज फिर जब लोग ‘साइमन कमीशन’ से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए हैं और इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं,विदेशी सरकार ‘सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ (पब्लिक सेफ्टी बिल) और ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ (ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आनेवाले अधिवेशन में ‘अखबारों द्धारा राजद्रोह रोकने का कानून’ (प्रेस सैडिशन एक्ट) जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करनेवाले मजदूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैये पर चल रही है।
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गम्भीरता को महसूस कर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ’ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रयोजन है कि कानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परन्तु उसकी वैधनिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखण्ड को छोड़ कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरूद्ध क्रांति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘औद्योगिक विवाद’ के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।
हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतन्त्रता का अवसर मिल सके। हम इन्सान का खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परन्तु क्रांति द्वारा सबको समान स्वतन्त्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात अनिवार्य है।
८ अप्रैल सन १९२९ को दिन के करीब ११ बजे अमरशहीद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश हुकूमत के शोषण के खिलाफ सुसुप्त जनमानस को जाग्रत करने के लिए सेंट्रल असेंबली की पब्लिक गैलरी से बम विस्फोट किया था , हालांकि उससे किसी को चोट नहीं आई थी ,पर चारो ओर भीषण भगदड़ मच गयी थी , तभी बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंका गया गुलाबी रंग के पर्चो के एक पुलिंदा फड़फड़ाते हुए पत्तों की बौछार की तरह गैलरी के नीचे आया। उन पर्चो ने जमीन का भाग और कुछ कुर्सियों को ढक लिया था. अंग्रेजी भाषा में लिखे गए इन पर्चो का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत हैं -
‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना’
सूचना
“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है,” प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वेला के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं।पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जानेवाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है। आज फिर जब लोग ‘साइमन कमीशन’ से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए हैं और इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं,विदेशी सरकार ‘सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ (पब्लिक सेफ्टी बिल) और ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ (ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आनेवाले अधिवेशन में ‘अखबारों द्धारा राजद्रोह रोकने का कानून’ (प्रेस सैडिशन एक्ट) जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करनेवाले मजदूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैये पर चल रही है।
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गम्भीरता को महसूस कर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ’ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रयोजन है कि कानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परन्तु उसकी वैधनिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखण्ड को छोड़ कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरूद्ध क्रांति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘औद्योगिक विवाद’ के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।
हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतन्त्रता का अवसर मिल सके। हम इन्सान का खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परन्तु क्रांति द्वारा सबको समान स्वतन्त्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात अनिवार्य है।
इन्कलाब जिन्दाबाद !
ह. बलराज
कमाण्डर इन चीफ
कमाण्डर इन चीफ
सरदार भगतसिंह ने फ़्रांस के महान क्रान्तिकारी वेलां से प्रेरणा लेकर बम विस्फोट के दौरान फेंके गए जोशीले क्रांतिकारी पर्चे का मसविदा दिल्ली के
सीताराम बाजार की डैन में बैठकर लिखा था। इन पर्चो का मूल उद्देश्य जनता को यह संदेश देना था क़ि क्रान्तिकारियों ने असेंबली में यह घटना क्यों की हैं। उन्होंने एच.आर. एस. ए . के
गुलाबी रंग के लैटरहैड पर स्वयं ३०-४० पर्चे टाइप करके तैयार किये थे। इसके
लिए ड्रिल मास्टर राजबली सिंह ने मारवाड़ी हाई स्कूल से टाइप राइटर की
व्यवस्था की थी ,यह काम जयदेव कपूर ने कराया था। बाद में दिल्ली बम केस के अन्वेषण के दौरान पुलिस ने दिल्ली में जितने भी हाथ से चलने वाले प्रेसो की जाँच पड़ताल की थी। बहुत से टाइप राईटर भी मांगकर देखे गए क़ि किस टाइप मशीन से ये टाइप किया गए थे ,पर पुलिस अंत तक हकीकत नहीं जान पायी ।
यद्यपि अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह और दत्त द्वारा असेम्बली में फेंके गए सभी पर्चो को सफाई से बटोर लिया गया था और यह भरपूर प्रयास किया गया था कि इनकी गंध भी बाहर न जाने पाए ,परन्तु दिल्ली के अंग्रेजी दैनिक ' हिंदुस्तान टाइम्स ' संवाददाता होशियारी और फुर्ती से एक पर्चा उड़ा लिया था , जो शाम के संस्करण में छपकर आम जनता तक पहुंच गया था। अख़बार' वर्तमान ' कानपुर ने ११ अप्रैल १९२९ के अंक में पर्चे के बारे में यह लिखा था कि इस पर्चे में अंग्रेज सरकार की नादिरशाही का भंडाफोड़ करते हुए सशस्त्र क्रांति का समर्थन किया गया हैं.
इतिहास को बदल देने वाले इन जोशीले पर्चों के माध्यम से देश के कोने कोने में '' इंकलाब जिंदाबाद ''की यलगार गूँज उठी थी ,जिसने ब्रिटिश हुकूमत को हिंदुस्तान से लन्दन तक दहला दिया था और इस ऐतिहासिक घटना से व्याप्त सम्रग क्रांति के फलस्वरूप अन्तः १८ वर्ष बाद अंग्रेजो को भारत छोड़कर जाना पड़ा।
- अनिल वर्मा
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- अनिल वर्मा
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