Krantiveer Sardar Ajeet Singh

Articles of Ajit Singh


                     

                                                                                                                                                                     
                                       क्रांतिकारी  भगत सिंह को आज सारा देश शहीदे-आज़म के नाम से नाम से जानता  है , पर भगत सिंह को क्रांति के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करने वालें महान  क्रांतिवीर और  उनके यशस्वी चाचा सरदार अजीत सिंह को इस  देश ने भुला दिया है ।  अजीत सिंह ने मुल्क की आज़ादी के लिए पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी  , वह ३७ साल तक देश के बाहर रहकर भी आज़ादी के लिए गहन संघर्ष में लीन  रहे।
                                   २३ फरवरी १८८१  को खटकरकलां जिला जालंधर , अब जिला नवांशहर  में पिता सरदार अर्जुन सिंह और माता जयकौर के यहाँ जन्मे सरदार अजीत सिंह को देशभक्ति विरासत में मिली थी।  उन्होंने डी.ए.वी. कालेज लाहौर में डिग्री प्राप्त की और लॉ कालेज बरेली में कानून की पढ़ाई छोड़कर वह स्वाधीनता आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से जुट गए । उन्होंने अपने भाई सरदार किशन सिंह के साथ मिलकर '' पगड़ी सम्हाल जट्टा '' का नारा देकर पंजाब के गरीब किसानो को स्वाभिमान से रहकर देश की आज़ादी के लिए जाग्रत किया था।  
                                  वह आर्य समाज के संस्थापक  सदस्यों में से एक थे, सन १९०७ में उन्हें ब्रिटिश हूकुमत द्वारा लाला लाजपत राय के साथ बर्मा की मांडले जेल भेज दिया ,वहां  से रिहा होने के बाद भारतमाता सोसाइटी की क्रांतिकारी  गतिविधियों के कारण  अंग्रेजों  की आख की किरकिरी बन गये , उन्हें राजद्रोह में फाँसी देने का षड्यंत्र रचने की खबर मिलने पर , वो सूफी अम्बा प्रसाद के साथ ईरान चले गए और वहां क्रांतिकारियों का एक केंद्र स्थापित किया।  इसके बाद वह जर्मनी,तुर्की, पर्शिया,अफ़ग़ानिस्तान,रोम ,  जिनेवा, फ्रांस, ब्राज़ील पूरी दुनिया में जाकर देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करते रहे, पर अंग्रेज सर् कार  उन्हें पकड़ न सकी  . सन १९१८ में वह सेनफ्रंसिसको में   ग़दर पार्टी के संपर्क में  भी रहें। सन १९३९ में दुसरे विश्व युद्ध  के दौरान  यूरोप चले गए और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथ मिलकर स्वाधीनता प्राप्ति के अभियान  में जुटे रहें।

                                        अप्रैल १९४६ में सरदार जी गिरफ्तार  होकर जर्मनी के एक कैम्प में नज़रबंद थे , पूरे देश में उनकी रिहाई  का आन्दोलन होने और अंतर्राष्टीय दबाब पड़ने पर मजबूरन अंग्रेजों  को उन्हें रिहा  करना पड़ा। मार्च  १९४७ में देश की आज़ादी का सपना पूरा होने पर वह ३७ वर्ष बाद मुल्क वापस लौटे थे , पर देश के बटवारे का गम उनके मन पर छा गया था  , वह कहने लगे थे  कि '' ना  जवाहर देख रहा है  ना  जिन्ना , दोनों तरफ खून की नदिया बहा जाएगी ,मै यह देख नहीं सकूगा  , मै  जा रहा हूँ। '' लोगो ने सोचा कि वह  फिर से विदेश जाने की बात कर रहे है , किसी तरह उनकी पत्नी बीबी हरनाम कौर ने उन्हें रोका।   १४  अगस्त 1947 को जब रात  १२ बजे वह रेडियो पर आज़ादी के समारोह का प्रसारण सुनते रहें ,वह देश की आज़ादी का यज्ञ पूर्ण होने से बहुत प्रसन्न थे।  सुबह ४ बजे जब स्वाधीन भारत में  सूरज की पहली किरण ने उजियारा किया  , तब उन्होंने  अपने घरवालो को जगाकर कहा कि  'मेरा मकसद पूरा हो गया है अब  मै जा रहा हूँ ,दुनिया भर में फैले मेरे दोस्तों के लिए  मेरा संदेश लिख लो' , पर घरवालो ने डॉक्टर की सलाह पर  उनकी बात न मानी।  उन्होंने पत्नी सरदारनी हरनाम कौर को बुलाया और उनके पैर छूकर कहा कि '' मै  भारत माता की सेवा में लगा रहा , तुम्हारी  सेवा के फ़र्ज़ को पूरा नहीं कर सका, मुझे  माफ़ करना। '' फिर सरदार अजीत सिंह ने अंतिम बार  ''जय हिन्द '' का नारा  बुलंद किया  और  इच्छा  मृत्यु के साथ जीवन त्याग दिया। पौराणिक वीर भीष्म के बाद अजीत सिंह के अलावा ऐसी स्वेच्छा  मृत्यु  किसी और को नहीं मिली है ।  वास्तव में सरदार अजीत सिंह हमारे देश की क्रांति के भीष्म ही थे। पर्यटन स्थल डलहौजी में पंचकुला की हसीन वादियों मे स्थित  उनकी समाधि  देश के लिए  महान बलिदान  का स्मारक है। 

                                                                                        -अनिल वर्मा          anilverma55555@gmail.com


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