Bhagat Singh's revolutionary Brother Sardar Kultar Singh

          भगत सिंह के क्रान्तिकारी भाई  कुलतार सिंह   

           

with Anil Verma
 son Kiranjeet Singh , Anil Verma,Joravar 


Kultar singh ,his wife Satvinder with Actor manoz kumar


with his family

with Mata Vidhyavati


                                              अमर शहीद भगत सिंह का सम्पूर्ण परिवार देशप्रेम और बलिदान की अनुपम मिसाल है , भगत सिंह की शहादत के बाद उनके परिवार में क्रांति की मशाल को उनके छोटे भाई कुलतार सिंह ने बखूबी थामा था . भगत सिंह ने अपनी  फांसी के २० दिन पूर्व सेंट्रल जेल लाहौर से  कुलतार सिंह को लिखे गए अंतिम पत्र में हौसले बनाये रखने की नसीहत देते हुए लिखा था कि -

                                       ''  कोई दम भर का मेहमां हूँ, ऐ अहले- महफ़िल 
                                                     चिरागे-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ 
                                           हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिज़ली ,
                                           ये मुश्ते-खाक है फानी, रहे रहे न रहे ''


                                  कुलतार सिंह ने   इन शब्दों को जीवन में आत्मसात करके , देश और समाज की सेवा करते हुए जीवन में हर कठिन घड़ी का सामना बुलंद हौसले के साथ किया . २९ अगस्त १९१८ को नवांकोट लाहौर( अब पाकिस्तान ) में जन्मे कुलतारसिंह को वतन से मोहब्बत का जूनून विरासत में मिला था . पिता किशनसिंह की निर्भीकता  एवं सादगी, चाचा अजीत सिंह और भाई भगत सिंह के  त्याग और बलिदान  के  श्रेष्ठ गुण उनकी रगों में समाये हुए थे . चाचा  सरदार अजीत सिंह ३७ वर्ष तक देश के बाहर रहकर आज़ादी के लिए लड़ते रहे , उन्हीं  की निस्संतान पत्नी हरनाम कौर ने ही  कुलतार सिंह की परवरिश की थी , उन्होंने  खटकरकलाँ  के उसी प्राथमिक  स्कूल से विद्यार्जन किया  था , जहाँ कभी  भगतसिंह भी  पढ़े थे,   बचपन से ही भगतसिंह उन्हें बहुत चाहते थे,वह  भगत सिंह से जेल में भी मिलने जाते थे , भगतसिंह ने उन्हें  अपने अंतिम पत्र में लिखा भी था कि  तुम्हारे आंसू मुझसे सहन नहीं होते है . 

                                    कुलतार सिंह नौजवान भारत सभा के संस्थापक सदस्यों  से थे .फिर सन १९२९ में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में वह सेवादल के सदस्य भी रहे .भाई भगत सिंह ने अपने आदर्शों पर कायम रहकर  फांसी के फन्दे पर झूलकर देश की युवा पीढ़ी में क्रांति की जो अग्नि प्रज्वलित की थी , उसने कुलतार सिंह के अंतर्मन पर भी गहरा असर डाला था ,  सन १९३५ में उन्हें जॉर्ज पंचम के सिल्वर जुबली कार्यकर्मों  में बाधा डालने का काम सौंपा गया था , जिसमें वह    पंजाब के कई जिलों  में बिजली की सप्लाई फ़ेल करके  बखूबी कामयाब रहे थे . सन १९३६-४० में वह पंजाब किसान सभा में सक्रिय रहे , १ मार्च १९३७ को  श्रीमती सतिन्दर कौर के साथ उनका विवाह हुआ था , अंग्रेजों ने कुलतार सिंह को द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान १९३९ से १९४५ तक रावलपिंडी , गुजरात , लाहौर और देवली की विभिन्न जेल में निरुद्ध रखा  था , उस दौरान उन्होंने जीवटतापूर्वक  एक बार ६३दिन और फिर ३२ दिन की  लम्बी भूख हडताल की थी .  तब सतिंदर कौर ने उस संघर्ष के दौर  में ना  केवल साहस   के साथ घर और खेती-बाड़ी  संभाली  , वरन भगत सिंह के माता पिता की खूब सेवा भी की थी .

                                 सन १९४७ में स्वाधीनता प्राप्ति उपरांत जब लायलपुर से विस्थापित  होनें के बाद कुलतार सिंह का परिवार जब वापस जलंधर लौटा , तब वह ४ वर्ष तक शरणार्थियों की सेवा और पुनर्वास के कामों में जुटे रहे , फिर सन १९५१ में वह सहारनपुर में फॉर्महाउस खरीदकर वही बस गए , सन १९६३ में जब भगत सिंह  के अनन्य साथी  बटुकेश्वर दत्त माता विद्यावती से मिलने खटकरकलां पधारे थे  , तब कुलतारसिंह ने बहुत जोश से उनका शानदार स्वागत कराया था . सन १९७४ में  वह उत्तरप्रदेश  विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से  सहारनपुर से विधायक निर्वाचित हुए थे, फिर उ. प्र.  के मुख्यमन्त्री श्री  नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें अपने मत्रिमंडल में खाद्य और राजनैतिक पेंशन विभाग का राज्यमंत्री बनाया था , तब उन्होंने हजारों स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के लंबित पेंशन प्रकरण निपटाए थे ,  लखनऊ के पास काकोरी में भव्य  काकोरी स्मारक बनवाया   और सन १९७६ में उनके अनथक प्रयासों से ही वाराणसी में अमरशहीद  चन्द्रशेखर आज़ाद के अस्थि कलश को खोज कर कई शहरों में जुलूस निकालने  के उपरांत  लखनऊ संग्रहालय  में स्थापित किया गया था ,

                         सन १९८६ में जब पंजाब आतंकवाद के दावानल से धधक रहा था , तब  कुलतार सिंह ने अमेरिका,कनाडा और ब्रिटेन की यात्रा करके  प्रवासी  सिक्खों में अलगाव और  आतंकवाद के  खिलाफ संघर्ष करने की अलख जगायी थी , उन्होंने क्रान्तिकारी शिव वर्मा , दुर्गा भाभी , जयदेव कपूर , शचीन्द्र नाथ बक्शी के साथ मिलकर शहीदों के अधूरे सपनों को पूरा करने का अभियान जारी रखा , वह शहीद शोध संस्थान  लखनऊ और उत्त्तर प्रदेश स्वाधीनता सेनानी संघ के अध्यक्ष भी रहे  तथा आर्य समाज की गतिविधियों से भी सदैव जुड़े रहे , उन्होंने अपने  दोनों  पुत्र  जोरावर सिंह ,  किरनजीत सिंह तथा तीनों पुत्रियों वीरेंद्र, इन्द्रजीत और कवलजीत को   देशभक्ति के पारिवारिक संस्कार दिए थे , वीरेन्द्र संधू ने भगत सिंह पर प्रख्यात पुस्तक '' भगत सिंह एवं उनके मृत्युंजय  पुरखे ' लिखी है .  डॉ. के . एल. जौहर ने कुलतार सिंह  पर  एक पुस्तक '' सरदार कुलतार सिंह सिम्बल ऑफ करेज एंड  कनविक्शन ''लिखी है. 

                            यह मेरा परम सौभाग्य है कि मैंने  सन २००३ में प्रधुम्न नगर सहारनपुर( उ.प्र.) में  स्थित' भगत सिंह निवास 'जाकर  इस महान क्रांतिकारी  की चरणधूलि और आशीर्वाद प्राप्त किया था , तब वह बीमारी और वृद्धवास्था  के कारण अधिक बोलने की स्थिति में नहीं थे  . पहले ३ जून २००४ को  कुलतार सिंह जी की पत्नी श्रीमती सतविंदर कौर दुनिया से विदा हो गयी  , फिर उसके २ माह बाद ५ सितम्बर २००४ को चंडीगढ़ में कुलतार सिंह भी इस नश्वर संसार को छोड़कर चले गए , पर आज़ादी की लड़ाई में शहीद भगतसिंह के साथ  कुलतार सिंह जी की यादें भी हमेशा कायम रहेगी 

                                                                                                                       -अनिल  वर्मा  .








2 comments:

  1. Its really inspiring to read this article about Shahid Bhagat Singh & his brother Sardar Kaltar Singh. “Hindistan Shahido Ka” website is contributing to great cause for infusing surge of patriotism & national pride in the youth segment of society. I hope it will serve to inform this segment about the glorious heritage of nation.

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