Bhagat Singh's Great Sister Bibi Amar Kaur

                   भगत सिंह की क्रान्तिकारी बहन  बीबी अमर कौर


                    अमरशहीद भगत सिंह के महान व्यक्तित्व और उनके द्वारा जागृत देशप्रेम की अलख से उस दौर में नौजवानों की समूची पीढ़ी प्रेरित हुई थी,  परिवार में  उनकी क्रान्तिकारी विचारधारा का सबसे गहरा प्रभाव 
छोटी बहन बीबी अमर कौर पर  पड़ा था . वह  भगत सिंह से ३ वर्ष छोटी थीं , पर उनका बचपन एक साथ खेलते कूदते बीता था , सभी ६ भाई ३ बहिनों में से  उन दोनों में ही आपस में सबसे ज्यादा स्नेह था , भगत सिंह उन्हें  प्यार से 'अमरो'  कहते थे और अपने बालमन में उमड़ती देशप्रेम की बाते  उनसे ही करते थे.  भगत सिंह की लाडली बहन अमर कौर का जन्म १ जुलाई १९१० को हुआ था , इसके कुछ दिन बाद ही २० जुलाई को उनके चाचा स्वर्ण सिंह की मृत्यु हो  गयी थी , फिर भी पिता सरदार किशन सिंह और माता विद्यावती ने बहुत उत्साह से उनका नाम अमर रखा था जिसे उन्होंनें बखूबी सार्थक किया . 

               भगतसिंह के अमर कौर के साथ बचपन के संस्मरणों में से  सबसे यादगार वह घटना  है, जब सन १९१९ में  ब्रिटिश हूकुमत द्वारा जलियांवाला बाग में भीषण नरसंहार होने पर दूसरे दिन सुबह भगतसिंह स्कूल से बिना किसी को बताये अमृतसर चले गए थे और खून से लथपत मिट्टी एक छोटी  शीशी में भर कर देर रात घर लौटे  थे,जब अमर कौर  अपने स्वभाव के अनुरूप उछलते कूदते उनके पास पहुच कर बोलीं कि" वीरा आज इतनी देर कर दी, मैंने आपके हिस्से के फल रखे हैं चलो खा लो'' , तो भगत सिंह ने बड़ी  उदासी के साथ खाने से इंकार करते हुए  खून से रंगी वह शीशी दिखाकर यह कहा था कि 'अंग्रेजों ने हमारे बहुत आदमी मार दिए हैं', फिर वह कुछ फूल तोड़कर लाये और शीशी के चारों ओर रख दिए ,कई दिनों तक भाई बहन का फूल चढ़ाने का क्रम जारी रहा . यह बलिदान की वंदना थी, भगत सिंह उन्हें सदैव निर्भीक, बहादुर और देशभक्त बनाने हेतु  प्रयासरत रहते थे.

                 जब लाहौर षड़यंत्र केस में  भगत सिंह और उनके साथी लाहौर की जेल में बंद थे , तब अमर कौर अक्सर उनसे मिलने आती थीं , २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव  की फांसी के बाद  वह हुसैनीवाला में उस ओर दौड़ पड़ीं, जहां ब्रिटिश सरकार ने उनके  तीनो भाइयों  के शवों के टुकड़ों को मिट्टी तेल से जलाने की कुचेष्टा की थी  . वह अपने शहीद भाईयों  के शवों के चंद टुकड़े  स्मृति के बतौर  लायी थीं  और उन्होंने अपने तीनों वीरभाइयों  की  राह  पर आजीवन  चलने की कसम खायी  थी ,

                           एक बार जब उनके भाई क्रान्तिकारी सरदार कुलतार सिंह को जेल में  डाल दिया गया था , बीमार होने से जब उन्हें लाहौर के एक अस्पताल में भर्ती रखा गया था , तब  अमर कौर साहसपूर्वक  उन्हें भगाने का प्रयास कर रही थीं , इस योजना  की खबर मिलने पर उनके बहादुर पिता किशन सिंह ने  उन्हें यह जोखिम का कार्य से रोकने के विपरीत , यह कहा था कि' मैं अब फालिज़ गिरने से कमजोर हो गया हूँ , कहीं मेरे मुँह से कुछ निकल ना जाये , इसलिए मुझे कुछ नहीं  बताओ , मेरे पास ५०० रुपये हैं , यह रख लो और जो करना है वह करो.  '
        
                                                    बीबी अमर कौर ने ९ अक्टूबर १९४२ को लाहौर में जेल गेट पर सफलता पूर्वक तिरंगे झंडे का धव्जारोहण किया था , तब उन्हें  गिरफ्तार कर जेल भेजा दिया गया था,सन १९४५ में ब्रिटिश सरकार के विरोध में भाषण देने और  आन्दोलन करने के अपराध   में उन्हें  १ वर्ष ६ माह के कैद की सजा दी गयी थी , उस समय उनके पुत्र जगमोहन केवल १ माह के थे , वह भी अपनी माँ के साथ अम्बाला जेल में रखे गए थे . तब उसी जेल में आज़ाद हिन्द फौज  के काफी सैनिक  भी निरुद्ध थे  , शिशु जगमोहन उन सब की गोद में खेलते रहते थे, आखिर उन्हें ९ माह की यातना भुगतने के  बाद जेल से रिहा कर दिया गया.   

                        अमर कौर का विवाह पंजाब के एक किसान श्री मक्खनसिंह से हुआ था, वह बहुत ही सरल, सहज और नेक दिल इन्सान थे , उन्होंने अपनी पत्नी के द्वारा किये जा रहे  देशहित के राजनीतिक कार्यों में कभी  बाधा नहीं डाली , अमर कौर के ४ पुत्र और २ पुत्रियाँ हुए , उन्होंने एक पुत्र सरदार अजीत सिंह की निस्संतान  पत्नी को और एक पुत्र तन्हां रह रहे अपने सास ससुर को देकर काफी उदारता का परिचय दिया था , उनके यशस्वी पुत्र प्रो. जगमोहन यह बताते हैं कि  माता जी बचपन में उन सब भाई-बहिनों को पड़ोस के एक कश्मीरी परिवार की देख रेख में छोड़कर आज़ादी के कार्यो में हिस्सा लेने चली जाती थीं , पर उन्हें बड़े प्यार से देशप्रेम की बातें बताती थीं , उन्होंने परिवार  के साथ देश के प्रति अपने कर्त्तव्य पालन में कभी कोई कोताही नहीं की.

                          सन १९४७   में  देश की  आजादी और बटवारे  के  बाद वे  शरणार्थियों और  विस्थापित स्त्रियों के पुनर्वास के कार्यों में जुट गयी थीं ।  १९५६ में मजदूर-किसानों की माँगों के साथ उन्होंने ४५ दिन की भूख हड़ताल की थी । सन  १९७८ में   पंजाब में ‘जम्हूरी अधिकार सभा’ की ओर से  पुलिस दमन के विरोध में वे उग्र होकर संघर्ष करने में अग्रणी रहीं । बीबी अमर कौर जीवन संध्या में भी राष्ट्र  के प्रति अपने दायित्वों के निर्वाह में सजग रहीं , जब ८ अप्रैल  १९८१ को  भगत सिंह की शहादत की  ५० वीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी , तब बीबी अमर कौर ने लोक सभा में' इन्कलाब जिंदाबाद' के नारे लगाते हुए उसी दर्शक दीर्घा से सरकारी नीतियों के विरोध में पर्चे फेंके थे , जहाँ से ५२ साल पहले भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सुसुप्त जनता को जगाने हेतु  धमाका करने के लिए बम और पर्चे फेंके थे , अमर कौर के उन पर्चों में लिखा था कि क्या  इसी आज़ादी के लिए मेरे भाइयों  ने अपनी जिन्दगी कुर्बान की थी ?

                 सन १९८३  में समूचे पंजाब की धरती  खालिस्तान के आतंकवाद के विभीषिका से थरथरा रही थी ,अक्टूबर १९८३ में बीबी अमर कौर बहुत ज्यादा बीमार हो चुकी थीं और वह कोमा में चली गयी थीं , पर  तब  यह देखकर सभी  दंग रह गए थे , जब वह ४ दिसम्बर १९८३ को  अचानक बिस्तर से उठ गयीं और यह बोलीं  कि 'मेरा भाई कह रहा है, मेरा देश मेरा पंजाब जल रहा है और तुम आराम से सोयी हुई हो' , इसके बाद वह आतंकवाद के खिलाफ हिंदू-सिक्ख सदभाव की सांझी विरासत का झंडा लेकर आगे बढ़ीं . उन्होंने  आतकंवाद के विरोध में  १ लाख पर्चे छपवा कर पूरे पंजाब में  बंटवाये .वह अपनी जिन्दगी के अंतिम समय तक  पंजाब के गाँव-गाँव में जाकर लोगों को शहीद  भगत सिंह के विचारों से प्रेरणा लेकर उन्हें आतकंवाद से दूर रहने के लिए जागृत करने की   मुहिम में जुटी  रहीं.  उन्होंने १२ मई  १९८४ को देश सेवा करते हुए ही ,गुमनामी के अन्धेरें में ही अंतिम साँसे ली थीं और  फिर सदा के लिए अपने भाई के पास चली गयीं .


              उन्होंने अपने अंतिम दिनों में देश के नौजवानों के नाम  पर  जो वसीयत लिपिबद्ध की थी, उसका एक-एक शब्द देशप्रेम के सुनहरे हर्फों से मढ़ा हुआ है , इस ऐतिहासिक दस्तावेज में प्रचलित अर्थ में किसी संपत्ति के स्वामित्व की घोषणा नहीं है, बल्कि इसमें  देश और समाज की चिंता के साथ शहीदों के आदर्शों और भविष्य के क्रांतिकारी संघर्ष की एक संक्षिप्त और  विचारोत्तेजक अनुगूँज है जहाँ एक स्त्री जमीन-जायदाद और घर परिवार के सीमितदायरे से  मुक्त होकर  सिर्फ देश और समाज के नवनिर्माण के लिए क्रांतिकारियों के सपनों का ताना-बाना बुनती है और नई पीढ़ी के हाथों में इंकलाब की मशाल थमाना चाहती है। अपनी वसीयत में उन्होंने दर्ज किया है- ‘१९२९ में मजदूरों और किसानों को कुचलने के लिए अंग्रेज जिन कानूनों को लोगों पर थोपना चाहते थे, जिसके खिलाफ भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में बम फेंका था, वही कानून आज श्रमिक और ईमानदार वर्गों पर थोपे जा रहे हैं. वास्तव में वह देश के हालत से बहुत दुखी थीं, फिर भी उनके भीतर यह उम्मीदें जिंदा थीं कि चारों ओर फैला अंधेरा  कितना भी गहरा हो जाये , लेकिन कुछ दृढ़ कोशिशों से उजियारा लाया जा सकता है । इस ऐतिहासिक वसीयतनामे के अंतिम शब्द इस महान  क्रांतिकारी महिला की विचारधारा और उनकी विराट दृष्टि के परिचायक  हैं कि ‘मेरे मरने के बाद कोई धार्मिक रस्म न की जाए। प्रचलित धारणा है कि गांवों में मेहनतकश दलित लोगों को मुर्दा शरीर को छूने नहीं दिया जाता, क्योंकि इससे स्वर्ग में जगह नहीं मिलती! इसलिए मेरी यह इच्छा है कि मेरी अर्थी उठाने वाले चार आदमियों में से दो मेरे इन भाइयों में से हों, जिनके साथ आज भी सामाजिक अत्याचार हो रहा है।  मरने के बाद मेरी आत्मा की शांति के लिए अपील न की जाए, क्योंकि जब तक लोग दुखी हैं और उन्हें शांति नहीं मिलती, मुझे शांति कैसे मिलेगी!  मेरी राख हुसैनीवाला और सतलज नदी में डाली जाए। १९४७ में अंग्रेज जाते समय हमें दो फाड़ कर खूनोखून कर गए थे। मैं सदा सीमापार के भाइयों से मिलने को तड़पती रही हूं, लेकिन कोई जरिया नहीं बन पाया। पार जा रहे नदी के पानी के साथ मेरी यादें उस ओर के भाई-बहनों तक भी पहुँचे।’

                  क्या आज नई पीढ़ी  बीबी अमर कौर की इस वसीयत के  मर्म को आत्मसात कर सकेगीं ? यह विडंबना ही है कि हम आज भी शहीद भगत सिंह के सपनों के भारत का निर्माण नहीं कर सके हैं,  बीबी अमर कौर ने आजीवन अपने वीर जी के क्रान्तिकारी विचारों की विरासत को आगे बढाया है , देश और समाज के लिए उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है .
                                                                                                              


                                   
                    
with B K Dutt
with Rajguru's Sister & Mother
with BK Dutt's siter Pramila
                   


2 comments:

  1. A very nice brief but effective character scketch of Bibi Amar Kaur jee. It capture the spirit of her dedication to the cause of her Brother Shaheed Bhagat Singh.
    Hearty congratulations to Sh Anil Verma je.
    Little correction needed second photo is with sister of B K Dutt , Sh Parmila Devi.
    The second

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  2. I am speechless
    Regards 4 her
    Shuaib

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