रविन्द्र जैन का निधन : संगीत के सुनहरे अध्याय का अंत 
                                                                                - अनिल वर्मा

                                 

हिंदी फिल्मो के जाने माने संगीतकार और गीतकार रवींद्र जैन का आज ९ अक्टूबर २०१५ को शाम ४ बजे मुंबई  के लीलावती अस्‍पताल  में ७१ साल की उम्र में निधन हो गया है. वह लंबे समय से बीमार थे और पिछले कई दिनों से यूरिन इन्फेक्शन से जूझ रहे थे। इसके बाद उन्हें किडनी में दिक्कत हो गई थी। उनका लीलावती अस्पताल में आईसीयू में इलाज चल रहा था। बीते रविवार को वे नागपुर में थे, लेकिन बीमारी की वजह से वहां होने वाले कंसर्ट में हिस्सा नहीं ले पाए। नागपुर के वोकहार्ट हॉस्पिटल से चार्टर्ड प्लेन के जरिए उन्हें लीलावती अस्पताल लाया गया था।

                पिता पंडित इन्द्रमणि जैन तथा माता किरणदेवी जैन के घर  रवींद्र जैन का जन्म २८  फरवरी १९४४  को यूपी के अलीगढ़ में हुआ था। वे जन्म से ही देख नहीं पाते थे। उनके पिता पंडित इन्द्रमणि जैन संस्कृत के जाने-माने स्कॉलर और आयुर्वेदाचार्य थे। वे बचपन से इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि एक बार सुनी गई बात को कंठस्थ कर लेते, जो हमेशा उन्हें याद रहती। परिवार के धर्म, दर्शन और अध्यात्ममय माहौल में उनका बचपन बीता। वे प्रतिदिन मंदिर जाते और वहाँ एक भजन गाकर सुनाना उनकी दिनचर्या में शामिल था। रवीन्द्र भले ही दृष्टिहीन रहे हों, मगर उन्होंने बचपन में खूब शरारतें की हैं।

                                             रवीन्द्र अपने नाम के अनुरूप बंगाल के  रवीन्द्र-संगीत की ओर आकर्षित हुए। ताऊजी के बेटे पद्म भाई के कलकत्ता चलने के प्रस्ताव पर वह फौरन राजी हो गए। पिताजी से जेबखर्च के ७५  रुपए और माँ से  चावल-दाल की कपड़े की पोटली लेकर वह कलकत्ता पहुंच गए फिल्म निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला के जरिए रवीन्द्र को संगीत सिखाने की एक ट्‌यूशन मिली। जिसमे मेहनताने में चाय के साथ नमकीन समोसा मिला । पहली नौकरी बालिका विद्या भवन में 40 रुपए महीने पर लगी। इसी शहर में उनकी मुलाकात पं. जसराज तथा पं. मणिरत्नम्‌ से हुई। नई गायिका हेमलता से उनका परिचय हुआ। वे दोनों बांग्ला तथा अन्य भाषाओं में धुनों की रचना करने लगे। हेमलता से नजदीकियों के चलते उन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी से ऑफर मिलने लगे। एक पंजाबी फिल्म में हारमोनियम बजाने का मौका मिला। सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति के १५१  रुपए तक मिलने लगे। फिर  संजीव कुमार के संपर्क में  आने के बाद कलकत्ता का यह पंछी उड़कर मुंबई आ गया।   

                       जब वह सन्‌ १९६८  में राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ मुंबई आए ,तो पहली मुलाकात पार्श्वगायक मुकेश से हुई। रामरिख मनहर ने कुछ महफिलों में गाने के अवसर जुटाए। नासिक के पास देवलाली में फिल्म 'पारस' की शूटिंग चल रही थी।  संजीव कुमार ने वहाँ बुलाकार निर्माता एन. एन. सिप्पी से मिलवाया। रवीन्द्र ने अपने खजाने से कई अनमोल गीत तथा धुनें एक के बाद एक सुनाईं। श्रोताओं में शत्रुघ्न सिन्हा, फरीदा जलाल और नारी सिप्पी थे। अंततः उनका पहला फिल्मी गीत १४  जनवरी १९७२  को मोहम्मद रफी की आवाज में रिकॉर्ड हुआ। 

                            उन्होंने फिल्म सौदागर में उन्होंने मीठी यादगार धुनें बनाईं और स्वरबद्ध भी किया था ,जो लोकप्रिय हो गईं। फिर उन्होंने चोर मचाए शोर , गीत गाता चल , चितचोर  ,तपस्या ,  सलाखें , फकीरा ,दीवानगी और अंखियों के झरोखों में जैसी हिट फिल्मों का संगीत दिया था । एक महफिल में रवीन्द्र-हेमलता गा रहे थे, श्रोताओं में राज कपूर भी थे। उनका 'एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा' गीत सुनकर राज कपूर झूम उठे, बोले- 'यह गीत किसी को दिया तो नहीं?'  रवीन्द्र जैन ने तुरंत कहा, 'राज कपूर को दे दिया है।' बस, यहीं राज कपूर के शिविर में उनका प्रवेश हो गया । 

                              टी. वी. सीरियल ‘रामायण’, ‘श्रीकृष्णा’, 'लव कुश', 'जय गंगा मैया', 'साईँ बाबा' और 'धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान' सहित कई पॉपुलर शोज में म्यूजिक और आवाज दी। उन्हें बड़ा ब्रेक राज कपूर ने १९८५  में फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' में दिया था। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेठ संगीतकार का फिल्‍मफेयर अवार्ड भी मिला था। इसके बाद ‘दो जासूस’ और ‘हिना’ के लिए भी उन्होंने म्यूजिक दिया। राजश्री प्रोडक्शन की 'नदिया के पार', 'विवाह' और 'एक विवाह ऐसा भी' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में भी उन्होंने म्यूजिक दिया था।
उ।
                            रवींद्र जैन को भारत सरकार की ओर से पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था.मेरा यह सौभाग्य है गत अक्टूबर २०१४ को मुझे उनसे सागर में एक कार्यक्रम में मिलने का मौका मिला था , तब उनके मृदु व्यवहार और सरलता का मै कायल हो गया था

रविन्द्र जैन ने मन की आँखों से दुनियादारी को समझा। उन्होंने सरगम के सात सुरों के माध्यम से  जितना समाज से पाया, कई  गुना अधिक अपने श्रोताओं को लौटाया। वे मधुर धुनों के सर्जक होने के साथ गायक भी रहे और अधिकांश गीतों की आशु रचना भी उन्होंने कर सबको चौंकाया है। मन्ना डे के दृष्टिहीन चाचा कृष्णचन्द्र डे के बाद रवीन्द्र जैन दूसरे व्यक्ति हैं जिन्होंने दृश्य-श्रव्य माध्यम में केवल श्रव्य के सहारे ऐसा इतिहास रचा, जो युवा-पीढ़ी के लिए अनुकरणीय बन गया है। अपनी दुनिया, अपनी धुन में मगन रहने वाले रवींद्र ने एक बार कहा था कि वह संगीत के सुरों को अलग-अलग लोगों को करीब लाने का जरिया मानते हैं और अपने गीतों, अपनी रचनाओं से पीढ़ियों, सरहदों और जुबानों के फासले कम करना चाहते हैं।  रविंद्र जैन को भारतीय सिनेमा जगत में सबसे खूबसूरत, कर्णप्रिय और भावपूर्ण गीतों के लिए उन्हें सदैव जाना जाता रहेगा। 

        रविन्द्र जैन केकई लोकप्रिय आज भी लोग गुनगुनाते है , उनमे से चंद इस प्रकार है ……
    १-आज से पहले, आज से ज्यादा , २- अखियों के झरोखों से मैने देखा जो सावरे , ३-घुंगरु की तरह, बजता ही रहा हूँ मै , ४-गोरी तेरा गाँव बडा प्यारा, मैं तो गया मारा , ५- गूँचे लगे हैं कहने, फूलों से भी सुना हैं तराना प्यार का ,६- हर हसीन चीज का मैं लतबगार हूँ ,  ७-जब दीप जले आना, जब शाम ढ़ले आना ,८-तेरा मेरा साथ रहे ,९-तू जो मेरे सूर में, सूर मिला ले, संग गा ले , १०- गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल,११- श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम , १२- सजना है मुझे सजना के लिए , १३-ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में, १४-एक राधा एक मीरा, १५ - घुंघरू की तरह , १६- हुस्न पहाड़ों का।,१७- मैं हूं खुशरंग हिना , १८- कौन दिशा में लेके।

                                                                     - अनिल वर्मा