अमरशहीद चंद्रशेखर आज़ाद की टोपी 
                                                                                  - अनिल वर्मा 
 
                                     



                                           अमरशहीद चंद्रशेखर आज़ाद ने बाल्यकाल  में वाराणसी में वीरतापूर्वक १५ बैत की सजा भुगतने के बाद यह भीष्म  प्रतिज्ञा ली थी कि   ब्रिटिश हुकूमत उन्हें फिर कभी जीते जी पकड़ नहीं पायेगी।  वह सन १९२५ के काकोरी ट्रैन डकैती कांड से लेकर २७ फरवरी सन १९३१ को अपनी शहादत  तक लगातार फरार रहे,इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत   पूरे देश मेंउनकी तलाश में शिकारी  कुत्तो की तरह पीछे पड़ी रही , पर वह  फिर कभी पुलिस के हत्थे नही चढे। उनके इस लंबे और सफल फरारी जीवन का मुख्य राज यह   था कि वह  अपनी पहचान छिपाये रखने के लिए अपना परिवेश  , बोलचाल  और वेश भूषा निरंतर बदलते रहते थे  और उनका व्यक्तित्व ऐसा अनूठा था  कि वह वेश बदल कर  कभी निपट देहाती बन जाते ,तो  कभी  साधु संत, पंडित, सेठजी, या  शिकारी बन जाते थे  , फिर उनके परिचित तक उन्हें पहचान नहीं पाते थे।

                        अभी हाल में जनवरी २०१७ में मुझे कानपुर में अमरशहीद चंद्रशेखर आजाद की ऐसी ही एक दुर्लभ  टोपी देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ .जिसके बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते है. कानपुर के परेड इलाके की तंग गलियो में सन १९३३-३૪ के बने तिलक मेमोरियल हाल में एक पुरानी लायब्रेरी में आजाद की यह टोपी रखी हुई है. सन १९२५ में काकोरी कांड के बाद आजाद ट्रेन से कानपुर जा रहे थे. तब तक अधिकांश क्रन्तिकारी पकडे जा चुके थे। उन्हें  भलीभांति यह आभास था कि कानपुर में सी.आई. डी पुलिस सरगर्मी से उन्हें चप्पे चप्पे में तलाश कर रही है. वो गंगाघाट स्टेशन पर उतरकर पैदल ही गंगापुल पार करके पटकापुर में अपने परिचित श्री नारायण प्रसाद अरोडा के घर चले गये और सुबह वहां से रवाना होते समय उन्होने वेष बदलने के लिये अपनी खादी टोपी उतारकर अरोडा जी के बेटे द्रोण को दे दी और उसका हैट पहनकर बेख़ौफ़  पटकापुर की गलियो से होते हुए, सकुशल अपनी राह पर आगे बढ़  गये थे । 

                            आज़ाद की   इस टोपी को श्री नारायण प्रसाद अरोड़ा ने आजीवन बहुत संभाल कर  रखा था , वह हर साल   यह टोपी केवल राखी के समय ही  पहनते थे। अरोड़ा जी की मृत्यु उपरांत उनके पौत्र डा. अरविन्द अरोडा ने इस टोपी को तिलक मेमोरियल सोसाइटी कानपुर को भेंट किया  था . अमरशहीद आजाद की इस  ऐतिहासिक टोपी को  देख कर मैं काफी भावुक हो गया था. उस समय मेरे साथ श्री क्रांति कुमार कटियार जी भी थे .जो कि शहीद भगत सिंह के अन्यय साथी और लाहौर षड़यंत्र केस में कालापानी की यातना  भुगतने वाले महान क्रांतिकारी डा. गया प्रसाद कटियार  के सुपुत्र है. 
                                                                                                                      -अनिल वर्मा