शहीद भगत सिंह की बहन बीबी प्रकाश कौर

    
    शहीद भगत सिंह की बहन बीबी प्रकाश कौर 
                                                                   - अनिल वर्मा 



                                                     
        

                          
                                                 शेरे हिन्द सरदार भगत सिंह के परिवार को देशभक्ति ,त्याग और बलिदान के अनुपम गुण विरासत में मिले सच्चे मोतियों के समान थे . उनके यशस्वी पिता  किशनसिंह और माता विद्यावती की कुल ९ संतान जगत सिंह , भगत सिंह , बीबी अमर कौर , कुलबीर सिंह , बीबी शकुंतला देवी ,कुलतार सिंह , बीबी प्रकाश कौर , रणवीर सिंह और रजिन्दरसिंह थी , इनमे से जगत सिंह का  तो काफी पहले ही युवावस्था में निधन हो गया  गया था  , फिर इसके बाद   भगत सिंह ने २३ वर्ष की अल्पायु में देश के लिए फांसी के फंदे पर झूलकर शहीद हो गए थे और इससे पूरे देशवासियों  के साथ ही उनके भाई बहिनो में भी देशभक्ति का जो अनूठा जज्बा जाग्रत हुआ था , वह उन सब में आजीवन यथावत कायम रहा .

                                               प्रकाश कौर जी का जन्म पाकिस्तान के लायलपुर जिले में गांव खासडिय़ां में १९१९  में हुआ था , उन्हें घर में लोग सुमित्रा के नाम से जानते थे ,उन्हें अपने प्रिय प्राजी भगत सिंह के साथ रहने और खेलने कूदने का कम ही अवसर मिल सका , भगत सिंह अल्प  आयु में ही क्रांति के पथ पर चल पड़े थे , वह जान बूझकर घर परिवार से दूर रहते थे , ताकि उनके क्रान्तिकारी अभियानों में कोई  बाधा न पहुंचे। २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह की शहादत के समय प्रकाश केवल १० वर्ष की थी, पर इस घटना ने उन पर गहरा असर डाला था और वह अपने महान भाई के बलिदान गाथाओं से वह पूरे जीवन भर गौरव अभिभूत  रही ।


                                            बीबी प्रकाश कौर का विवाह राजस्थान के गंगानगर  जिला की पदमपुर तहसील के ५ एन एन  के हरबंश सिंह मलहि के साथ हुआ था , प्रकाश कौर में अपने भाई भगत सिंह के समान अदम्य साहस और संघर्ष का अनूठा ज़ज्बा था , वह ६ फीट ऊंची कदकाठी  की   रौबदार व्यक्तित्व की थीं। १९४७ में देश के बटँवारे की त्रासदी के दौरान उन्होंने दंगे रोकने और लोगो के पुनर्वास करने में अहम दायित्व का निर्वाह किया था।  वर्ष १९६७ में उन्होंने पंजाब विधानसभा के आम चुनावों में भारतीय जनसंघ की टिकट पर कोटकपूरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा है,  तब  अकाली दल के उम्मीदवार हरभगवान सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी मेहर सिंह को हराया था, जबकि प्रकाश कौर करीब पांच हजार मत लेकर तीसरे स्थान पर रही थीं । उस समय भारतीय जनसंघ के सीनियर नेता एडवोकेट श्रीराम गुप्ता की अगुवाई में प्रकाश कौर के समर्थन में जोरदार चुनावी मुहिम चली थी और चुनाव प्रचार में शहीद भगत सिंह की माता समेत परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल हुए थे।

                                   सन १९८० में बीबी प्रकाश कौर अपने पति और दोनों पुत्र रुपिंदरसिंह और हकमत सिंह के साथ कनाडा चली गयी और वहीं बस गयी थी , करीब १९९५ में   उनके पति  का निधन हो गया था। इनकी दो बेटियां गुरजीत कौर व परविंदर कौर की होशियारपुर के गांव अंबाला जट्टां के एक ही परिवार में शादी हुई  हैं। गुरजीत कौर अभी गांव में ही रहती हैं , जबकि परविंदर कौर कनाडा में रहती हैं।

                                          इस देश की विडम्बना है कि हमने जिन शहीदों और क्रांतिवीरो के अपार त्याग और बलिदान से यह आज़ादी पायी है , उन्हें भुला दिया गया है , उन्हें और उनके वीर परिवारों को सम्मान देना तो दूर रहा , हमारी पाठ्य पुस्तकों में भगत सिंह और आज़ाद जैसे महान क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखा जा रहा है।  यह दुखद और  कटु सत्य है कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह के  एक रिश्तेदार को आतंकवादी करार देकर पुलिस द्वारा फ़र्ज़ी एनकाउंटर में  गोली मारकर हत्या कर दी गयी और उनके परिजन न्याय  के लिए पिछले २५ साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था , तब १९८९ में प्रकाश कौर की बेटी  सुरजीत कौर के दामाद के भाई और ओलंपियन धर्म सिंह के दामाद अम्बाला के जत्तन गांव के रहने वाले कुलजीत  रहस्यमय ढंग से गायब हो गए थे, उन्हें होशियारपर के गरही  गावं से पंजाब पुलिस ने पकड़ा था ,तब से वह लापता है और ऐसा विश्वास है कि पुलिस ने उनकी हत्या कर दी थी।

                    भगत सिंह की वीरांगना बहन  बीबी  प्रकाश कौर इस मामले में लगातार कनाडा से भारत आकर न्याय के संघर्ष में जुटी रही ,उनके द्वारा  सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी रिट याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट को मामला शीघ्र निपटने के दिशा-निर्देश दिए थे और होशियारपुर के सेशन कोर्ट को जल्दी मामले में सुनवाई पूरी करने के लिए कहा है। जिसके बाद से सुरजीत को न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। सुरजीत का परिवार 1989 से ही कुलजीत की रिहाई के लिए प्रयासरत था। बाद में पुलिस ने कहा कि जब कुलजीत को हथियारों की पहचान के लिए ब्यास नदी के नजदीक ले जाया गया था तो वह उसकी गिरफ्त से निकलकर भाग गया था।प्रकाश कौर ने सितंबर 1989 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग गठित किया। आयोग ने अक्टूबर १९९३  में अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में पंजाब पुलिस अधिकारी एस. एस.पी अजीत सिंह संधु (जिसने १९९७ में आत्महत्या कर ली ), डी . एस.पी. जसपाल सिंह ,सार्दुलसिंह , एस.पी.एस. बसरा , सीताराम को प्रथम दृष्टया दोषी  होना इंगित किया गया था और यह कहा गया कि पुलिस की कुलजीत के भागने की कहानी काल्पनिक है। यह दुर्भाग्य है कि बीबी प्रकाश कौर के जीवनकाल में यह मामला अंतिम रूप से निराकृत नहीं हो पाया . बीबी प्रकाश कौर अंतिम बार व २००५ में होशियारपुर आई थी।
 
                                        बीबी प्रकाश कौर का  ९४ वर्ष की आयु में गत २८ सितम्बर २०१४  को उनके  भाई शहीद-'ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिन पर ही  ब्रंटन (टोरंटो ) कनाडा में देहांत हो गया है । उस दिन मृत्यु के पूर्व  परिवार के लोग एवं कनाडा के कुछ संगठन के लोग उनसे मिले थे ,भगत सिंह के बारे में चर्चा किये थे  और उनका आशीर्वाद लिए थे।  वह करीब ६ वर्ष से वह लकवा से पीड़ित थी, चल फिर नहीं पाती थी और बिस्तर पर ही थी । उनके देहांत की जानकारी पंजाब के होशियारपुर में रहने वाले उनके दामाद हरभजन सिंह दत्‍त ने दी।प्रकाश कौर के निधन के  बाद अब भगत सिंह  कोई भी भाई बहन जीवित नहीं बचे है ।   बीबी  प्रकाश कौर ने मृत्यु के चार दिन पहले बुलंद हौंसले के साथ अपनी बेटी गुरजीत कौर से कनाडा में यह कहा था कि जिंदगी में कभी हौंसला मत हारना। प्रकाश कौर  ने तो अपने महान भाई का अनुसरण करते हुए अपना पूरा जीवन देश और समाज के लिए बुलंद हौसलों के साथ भरपूर जिया , उन्होंने अपनी राखी भी आज़ादी के हवन कुण्ड में समर्पित कर दी थी , पर  हम कृतघ्न देशवासी उन्हें सम्मानपूर्वक श्रद्धांजलि भी नहीं दे सके है , यह उनका नहीं वरन हमारा ही दुर्भाग्य है।  
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        -अनिल वर्मा                  








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शहीद भगत सिंह के भाई क्रांतिवीर सरदार कुलबीर सिंह




शहीद भगत सिंह के भाई क्रांतिवीर सरदार कुलबीर सिंह  
                                                                               
                                                                                                                             - अनिल वर्मा

अभितेज सिंह
 

                                                                                                               





                  
                                    कुलवीर सिंह उस महान परिवार के रोशन  चिराग थे ,जहाँ  देशभक्ति और बलिदान की भावना रग रग में समायी हुई थी , अमर शहीद भगत सिंह के छोटे भाई कुलबीर सिंह का जन्म २६ फरवरी १९१५ को सरदार किशनसिंह और माता विद्यावती के घर लाहौर में हुआ था . उनकी प्राथमिक शिक्षा  दादा अर्जुन सिंह के संरक्षण  में ग्राम बंगा में हुई थी , फिर उन्होंने लाहौर के डी.ए.वी. मिडिल स्कूल से आगे की पढ़ाई की थी , पर १९२९ में उनकी पढ़ाई पर  पूर्ण विराम लग  गया और वह भी परिवार की गौरवशाली परम्परा को आगे बढाते हुए क्रांति के पथ पर चल पडे एवं क्रांतिकारियों के भूमिगत आंदोलन में छिपकर सहयोग देने लगे।

                              बड़े भाई भगत सिंह की  असेंबली बम केस में गिरफ़्तारी  के बाद कुलबीर अपने माता पिता के साथ  सेंट्रल जेल और बोर्स्टल जेल लाहौर उनसे मिलने जाते थे , देश के हजारो नौजवानों की भाँति  वह भी भगतसिंह को अपना हीरो मानते थे।  भगत सिंह भी उन्हें बहुत चाहते थे , उन्होंने जेल में रहते हुए कुलवीर को ३ पत्र  क्रमशः १६ सितम्बर १९३० , २५ सितम्बर १९३० और ३ मार्च १९३१ को लिखे थे . उन्होंने अंतिम पत्र में कुलबीर के लिए काफी चिंता व्यक्त करते हुए लिखा था कि ''मै तुम्हारे लिए कुछ न कर सका ,तुम्हारी जिंदगी का क्या होगा ,गुजारा कैसे करोगे , यह सोचकर काँप जाता हूँ , मगर भाई हौसला रखना , मुसीबत में भी कभी मत घबराना , आहिस्ता आहिस्ता मेहनत करके पढ़ते जाना ,जानता हूँ कि आज तुम्हारे दिल के अंदर गम का समुन्द्र टाठे मार रहा है ,पर हौसला रखना मेरे प्यारे भाई '' . २३ मार्च १९३१ को भगत सिंह फांसी पर चढ़कर वतन के लिए शहीद हो गए और क्रांति की विरासत कुलबीर सिंह को सौप गए। कुलबीर सिंह  जल्द ही भगत सिंह के संगठन नौजवान भारत सभा से जुड़ गए।

                      सन १९३५ में जब पंजाब में जॉर्ज पंचम के स्वागत की तैयारी चल रही थी , तब कुलबीर ने अपने साथियो के साथ मिलकर लायलपुर और आस पास के जिलो की बिजली व्यवस्था फ़ैल करके रंग में भंग कर दिया था ,उन्हें गिरफ्तार किया गया , पर सरकार कोई गवाह न मिलने से मुकदमा नहीं चला पायी . इसी साल वह  लायलपुर के जिला बोर्ड के सदस्य भी निर्वाचित हुए।  उन्हें पंजाब किसान सभा का जनरल सेक्रेटरी और कांग्रेस सोशियोलिस्ट पार्टी की प्रांतीय  समिति का सदस्य भी बनाया गया , उन्होंने अनेक किसान आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया ,  १९३९ में उन्हें  Defence of India Rules के तहत  ६ माह जेल की सजा दी गयी ,२६ जून १९४० को वह अपने भाई कुलतार सिंह के साथ फिर गिरफ्तार कर लिए गए उन्होंने जेल में अपने क्रन्तिकारी साथियो धन्वन्तरी , राम किशन भरोलियन ,टीकाराम सुखन के साथ ६३ दिन की लम्बी भूख हड़ताल की, तब वह काफी बीमार हो गए थे , जब माता विद्यावती मिलने आई तो जेल अधिकारियो  ने उन्हें मिलने नहीं दिया , परन्तु माता के प्रचंड विद्रोही स्वरूप के सामने जेल अधीक्षक बुरी तरह घबरा गया , उसने गिड़गिड़ाकर माफ़ी मांगी और कुलबीर को इलाज के लिए लाहौर के मेयो अस्पताल भिजवा दिया। बाद में जेल में राजनैतिक बंदियों की सुविधाओ के सम्बन्ध में यह हड़ताल पूरे देश में फ़ैल गयी , सरदार कुलबीर सिंह को पुनः जेल भेज दिया गया , पर वहाँ  भी उन्होंने संघर्ष जारी रखते हुए३२ दिन की भूख हड़ताल की , इधर देवलाली जेल में जयप्रकाश नारायण , सेठ दामोदर दास  डॉ. जेड. ए. अहमद , एस. ए. डांगे ने भी भूख हड़ताल की .६ माह के अंतराल बाद १९४४ में कुलतार सिंह को फिर गिरफ्तार  कर लिया गया और वह १९४६ तक हिरासत में रखे गए   , फिर लाहौर हाई कोर्ट में याचिका दायर करने पर कुलबीर सिंह , उनके भाई कुलतार सिंह , बहिन बीबी अमर कौर को जेल से रिहा कर दिया गया .

                                                जब देश आज़ादी का सूरज देखने ही वाला था , तब उनके यशस्वी चाचा महान  क्रान्तिकारी अजीत सिंह ३७ साल बाद मुल्क वापस लौटे और देश के बटवारे से दुखी होकर १५ अगस्त १९४७ को ही उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आखे मूँद ली।  स्वाधीनता के उपरांत भी कुलबीर सिंह जी देश और समाज की सेवा में सतत जुटे रहे , १९४८ में उन्हें पंजाब कांग्रेस सेवा समिति का ‘G.O.C.’बनाया गया , कुलबीर सिंह  ने १९६२ में   फिरोज़पुर से लोकसभा चुनाव  जीत कर सांसद  रहे ,उनकी बहिन बीबी अमर कौर ने भी १९६७ में कपूरथला से जनसंघ की टिकिट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था।  उन्होंने युवाओ को अतीत के गौरव और   देशभक्ति  की प्रेरणा देने के लिए '' सरदार कुलबीर सिंह फाउंडेशन  '' की स्थापना की , वह आ. भा. स्वाधीनता संग्राम सेनानी संघ की हरियाणा  शाखा के प्रमुख भी रहे , उन्होंने  Faridabad Branch of Indian Council of World Affairs के प्रेजिडेंट पद पर भी कार्य किया , उन्होंने एक पुस्तक “Revolutionary Movements” Significance and Sardar Ajit Singh” भी लिखी , उन्होंने अपना बाद का जीवन क्रांतिकारियों के दुर्लभ दस्तावेजो के संग्रह में व्यतीत किया , यह उल्लेखनीय है कि भगत सिंह  द्वारा  जेल में लिखी गयी जेल डायरी  उनकी शहादत के २ दिन पहले ही लाहौर के जेलर द्वारा कुलबीर सिंह को  सौपी गयी थी।  १९८२ में उन्होंने क्रान्तिकारी  इतिहास संकलन के कार्य के लिए पाकिस्तान का भी दौरा किया , पर वह २२ अगस्त १९८३ को पुस्तक लेखन का कार्य अधूरा छोड़कर हमेशा  के लिए  अपने भाई शहीद भगत सिंह के पास चले गए। 

                   सरदार कुलबीर सिंह का विवाह  कान्ता  संधु से हुआ था , कुलबीर सिंह के २ पुत्र बाबर सिंह और अभय सिंह एवं २ पुत्री वर्षा बासी  और अमर ज्योति है , कुलबीर सिंह जी की पत्नी श्रीमती कान्ता  संधु एवं बड़े पुत्र बाबर का निधन हो चुका है उनके ५५ वर्षीय  बेटा अभय सिंह ने २०१२ में पंजाब विधानसभा के लिए पीपुल्स पार्टी के लिए चुनाव लड़ा था , वह अपने पिता कुलबीर की स्मृति में स्थापित कुलबीर सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के फाउंडर प्रेजिडेंट है , उनके पुत्र अभितेज सिंह इसके फाउंडर मेंबर है ।सरदार   कुलबीर सिंह को क्रांतिकारी   परिवार की  महान परम्परा के संवाहक के रूप में  शहीद भगत सिंह के साथ सदैव  याद रखा जायेगा। 
                                         
                                                                                                                   - अनिल वर्मा
 



                                      
                                            


क्रांतिवीर यतीन्द्र नाथ दास


         यतीन्द्र नाथ दास  : भूख हड़ताल में शहीद 
                                                                                                             - विकास गोयल 

 
                 
                         हिंदुस्तान के क्रान्तिकारी इतिहास में क्रांतिकारी यतीन्द्र नाथ का नाम सदैव अमर रहेगा , वो एक ऐसा वीर था , जिसे समूची ब्रिटिश हूकूमत  भी न झुका सकी थी , उन्होंने  देश की  स्वाधीनता के संघर्ष में   भूख हड़ताल के माध्यम  से तिल तिल कर मौत की ओर  बढ़कर  आत्म बलिदान  की जो प्रखर जीवटता दिखायी थी , वह तो अहिंसा के महान अनुयायियों में भी नहीं थी .

                                         महान क्रांतिकारी यतीन्द्र नाथ का जन्म २७ अक्टूबर १९०४ को कलकत्ता में हुआ था , जब वह महज ९ वर्ष के थे , तब उनके पिता बंकिम बिहारी दास और माता सुहासिनी देवी का निधन हो गया था , सन १९२० में उन्होंने मैट्रिक  उत्तीर्ण की थी , उसी  समय देश में असहयोग आंदोलन का बिगुल बजने पर यतीन्द्र भी स्वाधीनता की लड़ाई में कूद गए , वह पहली बार में ४ दिन के लिए जेल गए , फिर वह १ माह और ३ माह जेल की  सजा काटे। इसके बाद वह प्रख्यात क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल के संपर्क में आने के बाद क्रान्तिकारी पार्टी के सदस्य बन गए। सन १९२१ में दक्षिण कलकत्ता के नेशनल स्कूल में क्रान्तिकारी संगठनो की एक बैठक आयोजित की गयी , जिसमे शचीन्द्र नाथ सान्याल के प्रस्ताव पर सभी दलों और संगठनो को मिलाकर '' हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन '' नामक क्रांति दल गठित किया गया।  दल के लिए ' द  रेवोलूशनरी ' और 'पीला पर्चा '' छपवाकर देश भर में वितरण का अहम दायित्व यतीन्द्रबाबू को सौपा गया , जिसे उन्होंने बखूबी किया।  फिर उन्होंने दल के लिए पैसा जुटाने के लिए इंडो-बर्मा पेट्रोलियम के पेट्रोल पंप की डकैती के साहसिक कारनामे को बिना किसी बम पिस्तौल के किया था ।  उन्होंने बम निर्माण में  महारत हासिल कर ली।

                    इधर उत्तर भारत में चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और उनके साथी लगातार क्रान्तिकारी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे , १९२८ में भगत सिंह , राजगुरु और आज़ाद ने लाहौर में लाला लाजपत रॉय की हत्या का बदला एडीशनल  सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस सॉण्डर्स को गोली  मारकर लिया था , जब भगतसिंह छदम वेश में कलकत्ता पहुंचे ,तब यतीन्द्र नाथ से मिलने पर उन्होंने   साथियो को दल की आगरा  में बम निर्माण सीखने के लिए राजी कर लिया।  यतीन्द्र नाथ  दास ,भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव , आज़ाद , बटुकेश्वर दत्त आदि के साथ आगरा में बम फैक्ट्री स्थापित की ।  भगत सिंह और दत्त द्वारा दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद गिरफ़्तारी दी गयी , फिर पुलिस की धर पकड़ तेज होने पर फणीश्वर नाथ घोष मुखबिर बन गए , उसकी शिनाख्त पर १४ जून १९२९ को कलकत्ता के शरद बोस रोड के चौक से यतीन्द्र नाथ को भी गिरफ्तार किया गया और लाहौर भेज दिया गया।

                         यतीन्द्र नाथ , भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त , सुखदेव ,डॉ. गयाप्रसाद और अन्य क्रान्तिकारी सेंट्रल जेल लाहौर में बंद थे , भगतसिंह के आव्हान पर १३ जुलाई १९२९ से जेल में क्रांतिकारियों के साथ दुर्व्यवहार को लेकर भूख हड़ताल आरम्भ कर दी , हालाँकि इसके पहले  यतीन्द्र नाथ ने अपने पूर्व अनुभव के आधार पर साथियो को यह सचेत किया था कि अनशन द्वारा तिल तिल कर अपने आप को इंच इंच मौत की और सरकते हुए देखने से पुलिस की गोली का शिकार हो जाना या फांसी पर झूल जाना अधिक आसान होता  है . एक बार अनशन शुरू होने के बाद वह पीछे नहीं हटे ,अंग्रेजों ने उनकी भूख हड़ताल तुड़वाने का काफी कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। कुछ दिनों बाद जब उन्हें दबोचकर बलात दूध पिलाने की कोशिश की गयी ,तो डॉक्टर की लापरवाही से पेट की जगह उनके फेफड़ों में दूध चला गया ,  दिन पर दिन उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी , फिर भी उन्होंने अनशन तोड़ने और दवा लेने से मना कर दिया , यहाँ तक कि उन्होंने जमानत पर छूटने से भी इंकार कर दिया।  उनके अंतिम समय में छोटे भाई किरन् दास  को बुलाया गया।

                उच्च आदर्श और राष्ट्रीय स्वाभिमान के धनी यतीन्द्र नाथ दास का  जीवन दीप बुझने की कगार पर था , अंततः भूख हड़ताल के ६३ वें दिन वह १३ सितम्बर १९२९ को जेल में  अपने सब साथियो से  अंतिम बार मिले  , फिर क़ाज़ी नजरुल इस्लाम का गाना ' बोलो वीर ,चिर उन्नम मम शीर ' तथा इसके बाद ' वन्दे मातरम'  सुना और फिर कुछ देर बाद हमेशा के लिए अपनी आखें  मूद ली , भारत माता का यह महान सपूत स्वाधीनता की बलिवेदी पर शहीद हो गया , सेंट्रल जेल के अंग्रेज जेलर ने फौजी सलाम से उन्हें सम्मान दिया था और लाहौर के डिप्टी कमिश्नर हैमिल्टन ने भी उनके सम्मान में अपना हैट उतार लिया था। दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में उनके निधन पर मोतीलाल नेहरू ने स्थगन प्रस्ताव रखा था ,नेता सुभाष चन्द्र बोस ने उनके पार्थिव शरीर लाहौर से कलकत्ता लाने के लिए रेल के विशेष कूपे की व्यवस्था की थी ,शव के साथ दुर्गा भाभी  गयी थी, कलकत्ता में उन्हें अद्वितीय सम्मान मिला ,  उनकी शव यात्रा में ५ लाख से अधिक लोगो का जन सैलाब उमड़ पड़ा था . ऐसे ही महान देशभक्तों  के त्याग और बलिदान से हम आज स्वाधीन भारत में सकून से है , क्रांतिवीर यतीन्द्र नाथ दास को बलिदान दिवस पर शत शत नमन।

                                                                                              - विकास गोयल 
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