Amar Shaheed Thakur Roshan Singh


           ठाकुर रोशनसिंह : उपेक्षित है अंतिम निशाँ

 

                       ‘’ शहीदों की चिताओ पर लगेंगे हर बरस मेले,
                              वतन पर मरने वाले का यही बाकि निशाँ होगा‘’

         
रोशन सिंह का फांसी स्थल



बावड़ी , जहाँ रोशन सिंह  स्नान करते थे
रोशन सिंह की बैरेक


                                                                     आज के दौर में यह शेर पूर्णतः बेमानी हो चुका है ,मुल्क की आज़ादी के लिए मर मिटने वाले अमरशहीदों को भुला दिया गया है,शहीदों के विचारों, संदेशों ,उनके बलिदान की अनुपम गाथाएं भी बिसरा दी गयी है ,अधिकांश शहीदों के जन्मस्थल एवं शहादत स्थल और उनसे जुड़े स्मारक बदहाली और गुमनामी के अंधेरों में खो गए है.यही अंजाम ऐतिहांसिक काकोरी कांड मे शहीद होने वाले क्रान्तिकारी ठाकुर रोशन सिंह का शहादत स्थल का भी हुआ है.

          
          9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के निकट काकोरी में रेल का सरकारी खजाना लूटकर ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले काकोरी कांड और बमरौली डकैती कांड में २२ अगस्त १९२७ को लखनऊ की चीफ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश लुइस शर्ट और विशेष न्यायाधीश मोहम्मद रजा ने क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खां ,राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को भारतीय दंड सहिंता  की धारा  १२१(ए) व १२०(बी) के तहत ५-५  वर्ष की बामशक्कत कैद और धारा ३०२ व ३९६ के अनुसार फाँसी की सजा सुनाई  थी ,पर मौत का फरमान सुनकर यह वीर नौजवान खिलखिलाकर हंस पड़े थे.

                  ठाकुर रोशनसिंह  ने ६ दिसम्बर १९२७ को इलाहाबाद स्थित मलाका (नैनी) जेल की काल-कोठरी से अपने एक मित्र को लिखे पत्र में लिखा था: "इस सप्ताह के भीतर ही फाँसी होगी। आप मेरे लिये रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का सबब होगी, यह मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है,दुनिया की कष्ट भरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिन्दगी जीने के लिये जा रहा हूँ ,हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्मयुद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की।" पत्र समाप्त करने के पश्चात अन्त में उन्होंने अपना यह शेर भी लिखा था-
      
             "जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन!
              वरना कितने ही यहाँ रोज फना होते हैं।"


          फाँसी से पूर्व रात्रि में ठाकुर रोशनसिंह कुछ घण्टे सकून से सोये ,फिर देर रात से ही ईश्वर-भजन में लीन रहे। प्रात:काल शौचादि से निवृत्त हो यथानियम स्नान ध्यान किया, कुछ देर गीता-पाठ भी किया,फिर पहरेदार से कहा-"चलो " वह हैरत से देखता रह गया कि यह शख्स इन्सान है या देवता . फिर ठाकुर साहब ने अपनी काल-कोठरी को अंतिम बार प्रणाम किया और सीना तानकर गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फाँसी घर की ओर चल दिये।वहां जाकर उन्होंने फाँसी के फन्दे को चूमा ,फिर जोर से तीन बार 'वन्दे मातरम्'का उद्घघोष  किया और वेद-मन्त्र - "ओ३म् विश्वानि देव सवितुर दुरितानि परासुव यद भद्रम तन्नासुव" - का जाप करते हुए फन्दे से झूल कर शहीद हो गए।
              मलाका जेल के मुख्यद्वार पर अपार जनसमूह ठाकुर साहब के अन्तिम दर्शन करने एकत्र था, उनका शव जेल से बाहर आते ही आसमान "रोशन सिंह! अमर रहें!!" के नारों से गूँज उठा .विशाल शवयात्रा गंगा यमुना के संगम तट पर जाकर रुकी,जहाँ वैदिक रीति से उनका अन्तिम संस्कार किया गया। फाँसी के बाद ठाकुर साहब के चेहरे पर एक अद्भुत शान्ति दृष्टिगोचर हो रही थी। मूँछें वैसी की वैसी ही थीं ,बल्कि गर्व से कुछ ज्यादा ही तनी हुई लग रहीं थीं । ठाकुर साहब को मरते दम तक बस एक ही मलाल था कि उन्हें फाँसी दे दी गयी, कोई बात नहीं,क्योंकि उन्होंने तो जिन्दगी का सारा सुख भोग लिया,परन्तु बिस्मिल,अशफाक और लाहिडी ने जीवन का एक भी ऐशो-आराम नहीं देखा ,उनको इस बेरहम बरतानिया सरकार ने फाँसी पर क्यों लटका दिया.
                             आज इस ऐतिहासिक घटना के बाद ८७ वर्ष बीत चुके है ,वह मालका जेल जो महान क्रान्तिकारी ठाकुर रोशनसिंह की फांसी की गवाह थी , वर्तमान में स्वरुपरानी संपत अस्पताल में तब्दील हो चुकी है ,जिस बैरेक में शहीद रोशनसिंह कैद रखे गए थे ,वहां अब लोक निर्माण विभाग का स्टोर है ,जहां टूटा फूटा कबाड़ भरा हुआ है ,बैरेक के पास की  पानी की जिन बावड़ियों  में शहीद रोशन सिंह स्नान करते थे, उनकी हालत बेहद दयनीय है ,जिस जगह ठाकुर रोशनसिंह को फांसी हुई थी,वो अब पार्क का हिस्सा है,वहां पर स्मारक के बतौर एक बदरंग मटमैला पत्थर जरुर लगा है, उस  पर कभी ठाकुर साहब का अधोलिखित शेर अंकित था ,पर अब वह पूरी तरह से धूमिल और अपठनीय हो गया  है ,इस पार्क के भीतर ही  एक गन्दा नाला बहता रहता है, चारो ओर कूड़े कचेरे के ढेर से पूरे परिसर की हालत अति दयनीय है। स्मारक के आसपास इतनी गंदगी है, कि वहां एक पल ठहरना मुश्किल है।यह देखकर मन अत्यंत दुखित हो जाता है .दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले के थाना सिंधौली के पैना बुजुर्ग गांव में शहीद ठाकुर रोशन सिंह की प्रपौत्री इंदू सिंह को पति की मौत के बाद दबंगों द्वारा जमीन से बेदखल कर सरेआम मारपीट कर प्रताड़ित किया जा रहा है,उसका घर जलाकर राख कर दिया गया,आज वह भीषण गरीबी में नरेगा में मजदूरी करके बच्चों सहित खुले आसमान के नीचे रह रही है, पर कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है.


            यह विडम्बना है कि अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह के  शहादत स्थल में बदहाली और उपेझा का सन्नाटा छाया हुआ है और उनके वंशज इंसाफ पाने के लिए दर दर  भटक रहे है। इस अमर शहीद के अंतिम निशाँनों की इस दुर्दशा पर हम सब बेहद शर्मिंदा है। इसके लिए सरकारे,नेता  और अफसर तो जिम्मेदार है ही ,पर यह भी कटुसत्य है कि स्वाधीन भारत के वाशिंदों ने भी देश के इन सपूतों को भूला देने में कोई कसर बाकी नहीं  रखी है। शायद स्वर्ग में बैठी शहीदों की आत्मा भी इस बदहाली पर आंसू बहा रही होगी। 

                                  -विकास गोयल 
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